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________________ १०९ अत एव कुल ५५७ में २८६ लेख और स्थानोंके हैं और चाकी इन्हीं तीनों जगहोंके हैं। जैनियोंका शत्रुजय तीर्थ गुजरातके पालीताना नामक स्थानके पास है । उसका १२ नंबरका शिलालेख बडे मारकेका है। उसमें ६८ श्लोक हैं । इस तीर्थमें मूलमंदिरनामकी एक इमारत है । खम्भात (बंदर )के रहनेवाले सेठ तेजपाल सौवर्णिकने, १६५० संवत्में, उसका जीर्णोद्धार किया था । यह लेख उसी जीर्णोद्धारसे संबंध रखता है । तेजपाल अमीर आदमी था । विख्यात जैन विद्वान् हीरविजयसूरिके उपदेशसे उसने यह उद्धार कराया था। लेखमें उद्धारकर्ताके वंश आदिका वर्णन तो है ही, हीरविजयसरिके पूर्ववर्ती आचार्यों और उनके शिष्योंकाभी वर्णन है । यह वही हीरविजय हैं जिनको अकबरने गुजरातसे सादर बुलाकर उनका सम्मान किया था और उनकी प्रार्थनापर सालमें कुछ दिनोंतक के लिये प्राणिहिंसा बंद करदी थी । जज़िया नामक कर भी माफ कर दिया था । इस लेखमें हीरविजयसूरिके विषयमें लिखा हैदेशाद् गुर्जरतोऽथ सूरिवृषभा आकारिताः सादरं । श्रीमत्साहिअकबरेण विषयं मेवातसंज्ञं शुभम् ।। ___+ + + + + यदुपदेशवशेन मुदं दधन् निखिलमण्डलवासिजने निजे । मृतधनञ्च करञ्च सजीजिआ-भिधमकब्बरभूपतिरत्यजत् ॥ इससे यहभी सूचित हुवा कि किसीके मरजानेपर उसका
SR No.010030
Book TitleAbu Jain Mandiro ke Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1922
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size5 MB
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