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________________ ४६७ आदिनाथ चरित्र हो, भरतपति मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। पतिके गिर पड़ने से जैसे कुलाङ्गना चंचल हो जाती है, वैसेही उनके गिरते ही पृथ्वी काँप गयी और बन्धुको गिरते देखकर जैसे बन्धु चंचल हो जाता है, वैसे ही पर्वत चलायमान हो गये 1 अपने बड़े भाईको इस प्रकार मूर्छित हुआ देख, बाहुबलीने अपने मनमें विचार किया,- "क्षत्रियोंके वीर व्रत के आग्रहमें यह कैसी खुटाई है, कि वे अपने भाईको भी मार डालने से नहीं हिचकते ? यदि मेरे ये बड़े भाई नहीं जिये तो मेरा जीना भी व्यर्थ ही है ।" इस प्रकार सोचते और नेत्रोंके आँसू से उनका - सिञ्चन करते हुए बाहुबली अपने दुपट्टेसे भरतरायको पंखा झलने लगे । आखिर, भाई भाई ही है। क्षण भर बाद होश में आने पर चक्रवर्ती सोकर उठे हुएके समान उठ बैठे। उन्होंने देखा, कि उनके सामने दासकी तरह उनके भाई खड़े हैं। उस समय दोनों भाइयोंने सिर नीचे कर लिये 1 सच है, बड़ोंकी हार जीत दोनों ही लज्जा जनक होती हैं। तदनन्तर चक्रवर्ती ज़रा पीछे हटे ; क्योंकि युद्धकी इच्छा रखने वाले पुरुषोंका यह लक्षण है बाहुबलीने विचार किया, "अभीतक भैया भरत किसी-नकिसी तरह का युद्ध करना ही चाहते हैं; क्योंकि मानी पुरुष शरीरमें प्राण रहते ज़रा भी मानको हेठा नहीं होने देते । भाईकी हत्या से जो मेरी बदनामी होगी, वह अन्तकाल तक नहीं मिटेगी।" बाहुबली ऐसा सोच ही रहे थे, कि इतनेमें भारतचक्रवर्तीने यमराजकी तरह दण्ड हाथमें लिया । 1 पर प्रथम पव
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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