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________________ आदिनाथ चरित्र 1 .४६८ प्रथम एवं जैसे चोटी से पर्वत सोहता है और छाया-मार्गसे आकाश: शोभा पाता है, वैसेही उस ऊपरको उठाये हुए दण्डसे चक्रवर्ती भी शोभा पाने लगे । धूम्रकेतुका धोखा पैदा करनेवाले उस दण्डको चक्रवर्त्तने थोड़ी देर तक हवामें घुमाया, इसके बाद जैसे युवा सिंह अपनी पूँछको पृथ्वी पर पटकता है,, उसी तरह उन्होंने वह दण्ड बाहुबलीके मस्तक पर दे मारा। सह्याद्रि पर्वतके साथ समुद्रकी वेलाका आघात होनेसे जैसा शब्द होता है वैसा ही भयङ्कर शब्द उस दण्डके प्रहारसे भी उत्पन्न हुआ । निहाई पर रखे हुए लोहेको जिस तरह लोहेका धन चूर्ण कर डालता है, उसी तरह उस प्रहारसे बाहुबली के सिरका मुकुट चूर-चूर हो गया । साथ ही जैसे हवाके झकोरेसे वृक्षोंके अग्रभागके फूल झड़ जाते हैं, वैसेही उस मुकुटके रत्न टुकड़े टुकड़े होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। उस चोटसे थोड़ी देरके लिये बाहुबलीकी आँखें रूप गयीं और उसके घोर निर्घोषसे लोगोंकी भी वही हालत हुई। इसके बाद नेत्र खोल, बाहुबलीने भी संग्रामके हाथीकी तरह लोहे का उद्दण्ड दण्ड ग्रहण किया । उस समय आकाशको यही शंका होने लगी, कि कहीं ये मुझे गिरान दे और पृथ्वी भी इसी डरमें पड़ गयी, कि कहीं ये मुझे उखाड़ कर फेंक न दें। पर्वतके अग्रभागमें बने हुए बिल में रहनेवाले, सांपकी तरह वह विशाल दण्ड बाहुबलीको मुट्ठी में शोभित होने लगा । दूरले यमराजको बुलानेका मानों सङ्केत वस्त्र हो, उ उसो तरह वे उस लोहदण्डको घुमाने लगे । जैसे ढेंकीकी चोट धान
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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