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________________ १३६ रचना का प्रारम्भ ही लेखक ने मां निकला के कावपूर्ण उद्गारों से किया है |शोकाधिकार की भाषा प्राचीन राजस्थानी या बूनी गुजराती है। वर्मन प्रात बैली में है जिसका दूसरा नाम वयनिका है।काव्य गम काव्य की दृष्टि से starfare का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। रचना आइयोपान्त कान्त है तथा कुल ५१ राय काव्यात्मक कड़ियों में समाप्त होती है।कृति में करुण रस की धारा लेखक ने प्रारम्भ में ही बहाई है: अहो था किस प्रकालि उत्पात, सिह किसिंड वज्रपात अहो सीमाहरs गर्मि पनि बिल, इसि किसि विडा जिविश्वप्रलय गर्म के हल्के हो जाने से मां का विलाप कास्य दन में परिवर्तित हो जाता है। मां को उसके वस्त्र आभूषण तथा द्वारा अंगार ही काटने को दौड़ता है वह आभूषण वस्त्र और श्रृंगार सबको कोसने लगती है। वर्णन की अनुप्रावधता, प्रवाद आलंकारिकता तथा काव्यात्मकता ट्रष्टवह है: fta Frees reaकि ये माछई मउड पउ प्रत्यक्ष पाउड ए डार, साक्षात संहार गावकरी वर्ग जे वलय ते इस तना दीसई निलयास अपूर्व पट्ट डुकूल 3 देता था। भइ सर्वागी श्रृंगार से देता संपूर्ण अंगार fafer उदाहरण द्वारा काँव मे भी मिला के मम पवाडा को ट किया है गय की काव्यात्पया उसे और अधिक महितीत मीर बन बना देती है: पाह कारण देविई पालिड एक संतालु। यह fafe की क्य सरोवर पाठी, arti ft वाली माली नि टाठी किवि प्रवाही जीव कोडि माल वी इ बाली विलि, मगाई चंद सोकिई बार गहि निवा बिहार पानीमहल डीबजार । किसिद्धं पई कमायूँ बादिलाई देवि में इन बा - yrs als, 194CHT 9-2 २- वहीं, प्र०१० कड़ी ४-८ १६-१९॥
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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