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________________ १३७ जे ईसा बहुला, से थया क्या गीत गान करता गंधर्म, तेह तपा गया गर्व --- जे हूवा पंडित ते थिया दूस मंडित ने राम रहई अवस्य कृत्य, ते न दीस कर्तकी नृत्य | बेता चावरिया, ते थया वाढरिया । जे लोकाई करावs जुहार, सेवानिचला प्रतिहार जैसे निरंतर जीम वावरी, ते मौन की रहिया टावनी जे करता नगर भी करमवार ते बहती रहिया कार में लेखक ने की गर्म स्कुरण का पुनः ज्ञान होने पर दो पक्तियों में वर्णन कर रचना area की है: वाजिवाल (IT) मालिक तभी मृदंग राजभवन माह संपूर्ण आनन्द इस प्रकार व शादी में महब काव्य जन्म उक्त रचनाएँ उपल भाषा की दृष्टि से पर्याप्त महत्वपूर्ण है और गद्य में नये सोपान प्रस्तुत करती म्यूजियम है ।१०वीं शताब्दी के बम्बई के प्रिंस आफ वेल्स के शिलालेख के हृदय की भाषा मी पर्याप्त गद्य काव्यात्मक है। अतः गदय काव्य काउद्गम १०वीं पद्माब्दी से ही माना जाता है शादी के पश्चात् तो इस धारा में अनेक प्रौढ़ राजस्थानी भाषा में कृतियां उपलब्ध होने पती है। मतः ऊपर हमने बाकी artfeerein age eveावों की काव्य चुकवनिका की में प्रादेशिक भागों में रत्नाकर की भी हो काव्य की उद्भावक एवं प्रेरक प्रवृत्तियों पर प्रकाश डाला है अद्यावधि ग चीन माने ही उपलब्ध होती है। विविध होने पर बहुत संभव है कि वर्ष अन्य की प्रेरक और अनूठी रचनाएं उपलब्ध हों। खान के भंडार हर बंद पड़े है।अतः शोध की वर्तमान स्व- वडी, पक्ति ११-२७ ३- वही पंक्ति ३२-३४ । ४- देखिए प्रस्तुत ग्रंथ अध्याय ५ का जैनेवर (लौकिक) ३- नही मय पाग ।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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