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________________ ९२९ राजा एवं राजसमा वर्णन राजसभा किसी हाजीणि राजसी कुंक्म जति ष्टा दीधी कह विविध searली चतुष्क पूरिया एई, कर्पूर राना समातिया छई कृष्णा गरज बाधित परिमल महमडई कई मोठी उणी सिरि लबलहई बई फूल पर परिया छ, कठि प्रमाण पाय पीठ संयुक्त पुरुष प्रमाण सुवर्णमय सिंहासन राजा बइठा ठि राजा दीव छ, मस्तक श्रवेतातपत्र छई, पासई ant बागर पवित्र वाजई विक्रि वादित्र, मस्वगि युगट. कानि कुण्डल द हाराहार, महाउदार धनदा अवतार, रुपतनु भन्डार, चम इन्द्र जिस सोलकला सम्पूर्ण चन्द्र किस कडीया । जिस पृथ्वी ठोकत reates or vedioन्द्र नरेन्द्र । वमकी धारावाहिता शब्दों का प्रवाद तथा अभिव्यक्ति की चित्रातृमकता स्पष्ट परिलक्षित होती है। इसी की तुलना में नाम परिगमन शैली में लिखा तत्कालीन वर्ग रत्नाकर ग्रन्थ का दे वर्णन देखा जा सकता है: फै कस्तु देवानागल, तोंगल, सापसिलि वाति तिवर रिया तुलुक स्टा tato चांगल पावल धानुक घोवार धुनिक्षा परिकार होंय डोवटा वाणि पगार हाडि ढादि वह चहार बार गोष्ठि गन्ति गोर--} वस्तुतः इन ग्रथों की वेली या वर्णन परम्परागों में पवीत साम्य परिचित होता है। प्रकृति वर्मन में भी दोनों ही रचनाकरों ने नाम परिवना बैठी का अधिक आश्रय लिया है।कवि ने वर्ष काल का प्रारम्भ ही राजकुमारी रत्नमंजरी के जीवन की दि किया: हिम है कुमारि बडी मौनि मरि, पहिरी परिकार क्रीड़ा कर नव नवी परिवार मावि आबाद farafts aftera, काल, नाम जीविका मधुर ध्वनि मे गाजर दुधिवि पति भवता यक्का वाज व दिवि बीजी परमी पुल विपरीत आकाश, न्द्र पूर्व परिवार सुमीवकुमार चटर्जी द्वारा सम्पादिक-पृ० १ प्रथम कल्लोल |
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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