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________________ ११८ की विजय स्पष्ट दिखाई पड़ता है। वर्मन का सामर्थी देखिए: पुण्य की महत्ता का कितना उत्कृष्ट चित्र बींचा है: पुण्य लगइ पृथ्वी पीठि प्रसिद्ध पुण्यलम बन वाहित सिद्धि, पुण्य लगइ निर्मल बुदिच पुण्यलगह पर रिविदिय, पुण्य लगइ शरीरनीरोग पुण्य लगइ अगुरभाग पुण्यलग स्टंग परिवार तथा संयोग, पुथुम लगइ पठाणीय तरंग पुण्यलाइ मय नवारंग, पुण्यलाइ चरिगज घटा, चालता दीवs चंदन छटा. पुण्य लमs निरुपम रूप, अलक्ष्य स्वरूप पुण्य लाइ बसिया प्रधान बाबास, रंगमणीलास, पूजई मन चीरंबी आस, पुण्यलगह मानंददायिनी मूर्ति त स्फूर्ति पुण्य लगइ मला आहार, बद्धुत श्रृंगार पुण्य लगइ सर्वत्र बहुमान, घर्ष Teej aatas rates के ज्ञानी रचनाकार ने अनेक वर्मनों द्वारा अपने बहुमुखी होने का परिचय दिया है। राज्य, राजा, कडनीति, सवीप, भोजन, लगून, वर्षा, वसंत, विवि सात क्षेत्र युद्ध स्वयंवर, बत्तीस हजार देव, नगर सभा, प्रजा, नायिका, नायक, स्वप्न. संयोग वय, रितु प्रकृति संग्राम, आनन्द, हाथी घोड़ा, उत्सव तथा श्रृंगार आदि के विविध काव्यात्मक और परिमवनात्मक अनुप्रासीत वर्णन पृथ्वीचन्द्र चरित की बहुत बड़ी विशेषता है।खना के वर्नन शिल्प में aft मैथिली के वर्नरत्नाकर के पद साम्य रखी ही नीचे इष्टि से कुछ वर्ष दिर बाये है उनके आधार पर प्रस्तुत मध्य काव्य के काव्य सरगामी और पतित्व का सम्बन्धमान बनाया जा सकेगा। देव का वर्ष देखि बियाणीव विहीन मामी रवि जागर ढोकला बने विर देवि ग्राम मयंक मनिराम पकी नगर, स्वर्ग, धान्य, न भीमाइ सामान्य नदी बहई, लोक कई निर्वहई निवेश, प्रदेश तीन देखि पठानपुर पाटन ब
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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