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________________ ११५ उपलब्ध कृति गुर्वावली है।रमा बीकानेर में सुरक्षित है।रचनाकार श्री जिनगईध और रचनाकाल ०१४४० के बाद। जिनवधनने इसमें पाग के जैनाचार्यों की पट्ट नामावली महावीर स्वामी से सोमसुन्दर सूरि दी है। इसमें विशेषता यह है कि इन पट्टधर आचहयों का कवि ने गय काव्य की भाति प्रवाहपूर्ण भाषा में वर्णन किया है। पूरा वर्णन अन्तवानुमार से युक्त है। पट्टधर आचार्टी की सभ्य नामावली प्रस्तुत करने में उनका धार्मिक तथा सामाजिक इतिहास प्रस्तुत करने में यह रचना पर्याप्त सहायता करसकती है।मात्रा में विकास, गद्य ली नोन्नति, शब्द चकन का सौष्ठव, लेखक की स्मास प्रधान बेली भाषा का प्रवाह गतिशीलता क्रियापदों की सरलता और सुकातमा रचना का पहत्व और अधिक बढ़ा देता है। एक उदाहरण एतर्थ पर्याप्त है: जिम नरेन्द्र माहि राम, जिम मक्त माहि काम 'जिम स्त्री माहि रंभा, जिम वादित माल मा जिम सती माहि सीता, जिम स्मृति माहि गीता जिम साहसीक मा तिक्रमादित्य, जिम ग्रहण माहिं आदित्य বিন বলে মাতি মিণি, ত্ৰিম গামল মতি নুঙ্কালজি जिम पर्वत माहि मेक भूपर, बिन मनेन्द्र माहि पराब free जिम रस पी एल, नि मार मारलु माविममुख जिन सामतिका हिमाल म राती इस प्रकार गइन साहित्यका प्रतिनिधित्व करने वाली मह अकेली रममा ५वी सहावी की भी इसका पक्षमा प्रोडना परवं सरल है रका atm की बा.नवों की मान्यता प्रसा पूर्ण तथा हमपण मी दारण भाषा गत सौर्य के लिए इष्टव्य है: - प्रधान बीकानेर श्री अमरचन्द भाटा के पास डीडा
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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