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________________ ११४ १० जिस चंचल व मु बाकार जिसस चंचल मन मउ व्यापार । जिस संचल बीजन मुत्कार । जिम दो डिल्प चारित्र जिस कंबल ठाकुर अधिकार। जिस पीपल पान तिसी चंचल राज्य लक्ष्मी जाण तुम सरीक्षा विवेकी प्राणी इसीया संसार स्मीया कुआ मीडि काइ पढ़ई डुमते काइ रडवड श्रावक बृहतिवार की पावा का एक उद्धरण अलयू होगा: use sores विनय वेवावधि देव पूजा सामाजिक पोषहि दान वील तप भावनादि की धर्मकृत्य मन वचन काय वण क बल छतव atter समासन दीया नहीं। बादणाना भावत विषई साचविया नहीं | ator पाक्क्पिर्ण की। वीयाचार अनेक जुको अतिचार' । इस प्रकार धार्मिक मय साहित्य में बालावबोध टीका साहित्य और अतिचार शक रचनाएँ मिलती है जिनका लक्ष्य धार्मिक होते हुए भी उनमें साहित्यऔर मावा विषयक सौदर्य पर्याप्त मात्रा में विद्यमान है। (४) ऐतिहासिक मात् गम की इस धारा में इतिहास से सीधा सम्बन्ध रने वाली tere sege होती है। इन ऐतिहासिक रचनाओं में कुछ महापुत्रों जैनवाय और मम, गच्छ तथा पट्टों का विवरण मिलता है ऐतिहासिक साहित्य का प्रतिनिधित्व करने वाली इस प्रकार की रचना अद्यावधि सिर्फ एक ही उपलब्ध हुई है परन्तु अजमेर, नागौर, बैलर, दिल्ली, मेरठ मुजफरनगर, अम्बाला छावनी बादि धामों के द्वारों की बोध होने पर यह बहुत सम्भव है कि इस बीग के बाकी कई मय की रचनाएं उपलब्ध हौं । १- बीकानेर में।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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