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________________ चारिय लक्ष्मी के दाल हार, निरूपम ज्ञान भंडार सकल सूर हिरोमापि, श्री तपोगन्छ नमरे मणि क्वादित मतगंज सीह, निर्मक किया वंश पहिलीह चारद बिदा मागर गंभी रिम वर्जित सागर अज्ञान विभिर निराकरण, मर साय दावानलवारि पूर निज देश ना विवो धि नानेक देशबम निजाम लक्ष्मी प्रणीत सज्जन । मवाय विवार बसाळीस वज्तुि माहार श्री शन गार, प्रम प्रधानावतार वस्तुतः इसी प्रकार की गइम रचनाएं गद्य साहित्य के विकासम्म में नया मोड़ देने में समान है। - (५) गद्य काम्ब का उद्धावक एवं प्रेरक गद्य साहित्य: मम्युदयकाल में गइम काम्य की उझावक रचनाएं मिलती है यि काव्यात्मक दृष्टि सेबम्वृदय काल आदिकालीन हिन्दी गद्य का स्वर्णकाल कहा जा सकता है। अब तक प्राप्त रचनाओं में तुक प्रधान गद्यात्मक खाएं तो कई मिलती है जिनका विवेचन पहले किया जा चुका है परन्तु उनका काव्य की दृष्टि से महत्व साधारण ही कहा पाबमायो वैविध्याम बाब या संभ्या भी मेक है। म काव्य का ग्लावक एवं प्रेरक गायिका की इष्टि और भी अधिक महत्वपूर्ण है। मध्यम काल के पूर्व भी महब काम की मात मुक्मा प्रस्तुत करने बाला महल बन रचनागों मिला है जिन पर इसी अभ्याब में आगे प्रकाश बाला मामाघरम्य जैग रमानों का का रक्षाब और विकास प्रणा करने वाले कि मावा परिक्षित है। महा माय लेना भी आवश्यक प्रवीच होता है। गजकेसरी प्रकार से है। जिनमें इश्य काव्य में माटक और म्यागमनात्मक मारक क्या मिल रचनाएं आती है पड्म में जितने मन्य ले गरन अधिकार का प्रधान होते हैपड्यात्मक विभाग के
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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