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________________ दोनों रचनाएं बड़ी सरस और जन भावात्मक है। पदावली कोमल कांत, भाषा सरल और प्रासादिक है। रचनाओं का तुलनात्मक अध्ययन ही उचित प्रतीत होता है। दोनों रचना प्रकाशित है। ८५० चवल गीत का एक प्रकार विशेक कहा जा सकता है जो विशेषता मंगल काव्यों या उद्गारों का सूचक है। धवल गीत विशेषतया विवाहोत्सवों में गाये जाते है। विवाह और चवल को पर्यन्त माना जा सकता है।धवल संज्ञक रचनाओं में यही दोनों मीतियां सबसे अधिक प्राचीन | अतः चवल उ की परम्परा का श्री ममेव भवीं शताब्दी से ही होता है। विवाहों को भी after नवल ही कहा जाता है। यों विद्वानों ने पी विवहलो, धवल और मंगल संज्ञक को ही माना है। दोनों रचनाएं, गीत है। इनमीतों में कूति की तीव्रता, उल्लास, माया मत सरलता और बरसता है। कोमल वली तथा सुन्दर चयन है अलंकार प्रयाद यद्यपि दोनों वीं शताब्दी के काध की रचनाएं है। में अपूर्ण गति प्रदान करते है। पदन्यास प्रासादिक योजना सम्पन्न है। दोनों गुरु प्रार्थना से प्रारम्भ होते है। दोनों में पाठ साम्य भी मिलता है।प्रारम्भ ही देखिए: शाहरण: परछ: वीर जिनेसर ममइ सुरेवर निय युगवर निति सूरियण मायो, भक्ति पर हरसिद्धि परिम तिम तार व एक कारण देखि पूरण कथवरो नियम विनास पाय नाव इति विमिर मर सक मी वर मी अकबर निति दूरि सरस पनि म कम मेडन सुन कम माइसो मनि रमले विमान कारण मीडिय पूरन कल्पतरो दिवाना बनान, इरित तिमिर न (म) र सहसको * नागरी प्रवाहिनी पत्रिका: वर्ष ५८ अंक ४ ० २०११ ० ४१८-४६ २०० का ० ० ६ पद १-२ ३० वहीं, इ० ८१
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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