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________________ सीमा रेखा भी नहीं खींची जा सकती क्योंकि इस संक्रान्ति काल में भाषा परिवर्तन में प्रवादियां लगी होगी। मत प्रस्तुत कृति को उत्तर अपच और पुरानी हिन्दी, पुरानी राजस्थानी या अनी गुजराती की परम्पराओं का स्पष्टीकरण करने का श्रेय दिया जा सक्या है। यह भी संभव हो सकता है कि शोधकरतानों को इस कृति से भी कोई पूर्व की प्राचीन कृति मिल वाय पर ज्ञान वशेष की वर्तमान स्थिति में धनपाल की यह कृति सत्वपुरीब महावीर उत्साह ही सबसे प्रथम कृति कही जा सकती है। इस उत्पाड प्रधान मीत के पश्चाह मीहि पयवा से युक्त और भी छोटी छोटी रचनाएं मिलती है। क्तक साहित्य के सादिकाल का यह जैन साहित्य पर्याप्त सम्पन्न है।नगीतों के विषय धार्षिक है तथा इनमें इसी प्रकार के वय विषय से मर है।मामे पुस्तक काव्य के इन विविध पीबों, योनों गया स्तनों का परिचय कराया गया है। जिनपशि भूरि पल मीड -ttel मारकम मीति रचनाओं में बाइकी की दो प्रविण रखना अपाय होगी। ये दोनोरमार एक ही बताया लिली मईया इम का रसा काही सक। पाली रमा ! और दूसरी पत्तावोनों की मायामा रमा का भी १८ । रमा पाठी मी मात्र बाध और विश्व शाम हो। दी। दोनों मीलों में प्राचार्य जिनपति के बीन की विविध घटनामों औरसामा लक स्थितियों का वर्णन किया गया है। शाकिबी अमरगन्य बरलाल नाहटा पु.. वही और ॥
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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