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________________ ७८४ मोड कोड उद पमुह मया राय पगड परपि भइ को कार महक्यापि न लगा सोमयण राव बल बल पति रिमा गुच रवि पाडिया खरतर मछि जिनपद मूरि जगि जस पडा बना विक (or) इस तरा जिनमा सरि बष्टक पूरि बी के साधन पथ में गाने वाले विकारों के निराकरण का काम करता है। एना प्रकाशित है। भाषा की दृष्टि मेरमा 1वीं बवादी उत्तराईब की ही की गा सकती है। इसीरवना की पाल एक अन्याष्टक तक रचना कमभूमि माथाष्टक और मिलती है पर शाकाव्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं है। विषय प्रवान: विश्व प्रधान रखनामों विलय का वैविध्य मिलता है और कार्य विजय के आधार पर ही इनका अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। यों तो परित, पनाया काव्य तथा प्रबन्ध संशक लगभग मी काव्य विषय प्रधान ही है लेकिन माक्ति रखनामों के विषय में वैया वैविध्य मिलता है या पूर्ववर्षिक रमानों में नहीं मिला। इसीलिए इसका सब स में शियन पेक्षित मा गगा है। •परिणाग वारिपाठी का मामा पालों पर ली है। मन्दिरों की विविध प्रकार की मामा मा विभिन्न नियों की परिमाडियों m मारवारी रमाबों का नामकरण मिाया। बापी- नवान्दोकीयाका बोष माने के लिए को पक सपी मिली री रकमानों में हो। चैत्य परिपाठी, व परिवागावापाडी वादिपिल गाजे जो सब एकी नाव परिणामी बावकों ग नमन, मैला व्या पाना आदि
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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