SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 830
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७८५ सभी आ जाते है। उपलध चैत्य परिपाठी संज्ञक रचनाओं में जैन महास्त्रों तथा प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों के चैत्यालयों और वहां के तप के प्रभाव वर्णन मिलता है। चैrय परिपाठी शक कई रचनाएँ मिलती है ये सब रचनाएं एक ही विषय चैत्य वर्णन सम्बन्ध रखती है। इनमें वैविध्य भी है परन्तु प्रधानया वस्तु वबैन की डी है अत: इन्हें विषय प्रधान कहा जा सकता है। कुछ प्रमुख रचनाओं का विषय उल्लेखनीय है - श्री चैत्वपरिवादी प्रका श्री जय चैत्य परिवाड़ी रचना जैसलमेर इर्म भंडार में सुरक्षित है। रचना है तथा कृतिकार है श्री सोमप्रभमनि। रचना श्वादी उत्तराय की है भाषा आदि को देखकर यह कहा जा सकता है कि प्रतिदिन गाये जाने के कारण में रचनाएँ बड़ी लोकप्रिय रही होगी। पूरी रचना १९ छेदों में ली गई है। प्रस्तुत रचना का विषय जय तीर्थ के वैत्यों क्या देवताओं का वर्णन है। रचनाकार ने रिवन की वंदना कर कृति को प्रारम्भ किया। कृति में आराधना और उपासना आदि के वर्णन है ताकीनी है: के सामने की मी वाद विनेरिडि नचाइ ठोक्न शनिवार भई नवराि कठिनाइ कुमार दिन पीक (१०४) कवि ने मन्दिर में स्थित भी नामों का स्थान क्या सम्भव वर्णन किया है पारा से नमन किया है। गाया वर तथा परिवाड़ी का प्रतिकि वैत्यालयों में पाठ होता है। कवि की। ते दोहों के पूरा काव्य लिए है। माया के प्रवाह कवि ने विभिन्न चैत्यकुलको देव वा क्या है। उदाहरण :
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy