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________________ ७८३ - जिनपरि अष्टक - काज्य यह रचना सलमेर हु बहार की एक अपूर्ण प्रति के उपाय विसकी प्रारम्भिक पलिया पंडित है। रचनाकार बात है। पूरी रचना में रचनाकार ने कामदेव की बिनभद्रसूरि लिए ईस्वी का वर्णन किया है।यन की प्रतिपूर्ति जिनमरि काम के साथ युद्ध में कभी नहीं हार सकते कवि इसी लाय से निभरि पर प्रस्तुत गटक सिता है। रक्षा में भाषा और काम की मरमा गया था जब मुनावि मयत मुहारमा मन्धिय र मार प्रान टका बब बजिय बरस बरस मार मार पपिदिय वापिस धवल पुरंधर राम नाग सिंमार समापिण हथियार पाव रह सय परिय मैति निश्व पुरंग दल तव मयन राम बोल सक्क परविमति बप्पा परमि भषा मुषित शभा अम्हारर, का माइमा डावा बाट बरबारमार मा सम्मिा wिas किस प्रकार शिवाने पर काम कर लिया अपनी बारी माकर प्रयोगा। और साकार काम कराया है। बाबा रामसी का समय किलोरियों की मोडitin होगी और ममत्व अष्टा निमा गरमाबार रवि इनि इनि र - लिपि मर मि बोलामा निनिय हुन पसमा बम पर।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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