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________________ ६८० आदि मेद किए है।लोक काव्य होने से अनेक प्रकार के विषयों का समाहार इन रचनाओं में हुआ है। सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक लोक कथात्मक आदि अनेक क्षेत्र पवाड़ो के विषय है। उक्त वर्गीकरण से भी उपयुक्त वर्गीकरण राजस्थानी पवाड़ा साहित्य का किया जा सकता है।वीर क्याओं के अतिरिक्त प्राचीन बात और ख्यात साहित्य के रूप में राजस्थानी साहित्य विशालरहा है . इसमें लोक गाथात्मक पवाड़ो के अतिरिक्त प्रेम कथात्मक, वीर क्थात्मक, योगभूलक धार्मिक तथा जीवट से भरे साहसिक कथानक वाले पवाडे भी मिलते है। पाबूजी के पवाड़े अत्यन्त प्रसिद्ध है इसी प्रकार ढोला मारु रा दूहा भरथरी आख्यान आदि उल्लेखनीय है. वस्तुतः पवाडे लोक माध्यान के लिए न हो गए है। अनेक पवाड़ो की परम्परा तो चविषय मिलती है। बहुत प्रात्रीन परम्परा होने से पवाड़ा काव्यों के शिल्प से कई परम्परा अन्य काव्यों का माना जा मक्ता है। सबसे पहले मानव इसी तरह किसी वीर की प्रशस्ति या विशिष्ट कार्य को गीतात्मक स दिया होगा वही सम्भवतः पवाड़ा रहा होगा। पवाड़ा साहित्य यों भारत के हर एक प्रदेश में मिल जाते है। अन्य देशों की अपेक्षा हमारे भारतीय साहित्य की परम्परा अधिक प्राचीन पंजाबी पवाड़ा को बार महाराम पोवाड़ा, ब्रजभाषा में पारा, बंगाली में माथा अथवा काथा, मालवा तथा राजस्थान में पवाडो, कम्नड़ में लोबानी..पी. पवारे प्रावि अमेक अब मिल जाते है। पवाडो का आदि रचयिता कौन था या भानमा अत्यन्त कठिन है।यों अकिसिड साहित्य का सबसे बड़ा व रहस्थ उस कमिमीवाओं के मौन रहने में ही है परन्तु मायालय को न समुदायवाद और व्यक्तिवाद को लकर मुम्भेयर ग्रिम, रोल्पना पाण्ड, बिट वस बथा पर्षी मे पवाड़ो क रचयिताओं पर विस्तार में मार 1ि पाचात्य साहित्य में पवाडो शिल्प आदि - 1.a natar Balamge 38.
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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