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________________ ६८१ पर वैज्ञानिक रूप में कई विचार करने वाले लेखक है। वस्तुतः इन विभिन्न मतों द्वारा यह स्पष्ट हो जाता है कि पवाड़े किसी जाति विषेत्र या व्यक्ति विशेष की रचना है परन्तु इनकी परम्परा अनुश्रुतिबद्ध परम्परा होने से तीनों ही तथ्य इनके उत्सव में आशिक रूप में कुछ योग देते है। लोक गीत कलाकारों में कोई भी को अपने को स्व से पर की सीमा में लीन कर देता है, वही सच्चा लोक कलाकार है। यों इसकी उद्भावना महाकाव्यों, रोमास काव्यों तथा स्तोत्र आदि से भी मानी गई है' पर इससे केवल विषय उलझता है।पवाड़ो की सबसे बड़ी विशेषता ही यह है कि वे लोक गान है तथा उनका रचयिता कोई प्राणी विशेष नहीं है। यह तो हुई पवाड़ों की शिल्प सम्बन्धी प्राचीन बात।अब परवर्ती साहित्य में जितने भी काव्य मिलते हैं वे विविध विषयक है। ज्यों ज्यों स्था में वैमिन्नय माता गया त्यों त्यों क्या वस्तु मैं भी वैमिन्न्य आता गया।यों लोक कथानक होते भी ये काव्य अत्यन्त सरस है अतः उनको शिष्ट साहित्य का ताना बाना पहिना कर प्रस्तुत करने के कालान्तर में अनेक प्रयत्न हुए है। वास्तव में ये किसी व्यक्ति विशेष के विशिष्टकार्यों का स्पष्टीकरण करने वाली रचनाएं है। यद्यपि प्रारम्भ में यह काव्य लोक आख्यानक कथा का प्रतीक था परन्तु परवीं काल में यह वीर माध्यानक काव्यों के लिए हो गया है।मामाला विरचित नागदमण में पवाड़ा पनमा त था १८वीं मादी में विरचित देवी विलास ग्रन्थ में भी पवाडा वृद्ध ही उल्लेख है।" उपयुक्त सब विवेचन को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि पवाड़ा एक १-मरभरती वर्ष ४ क ८ २-नागरी प्रबारिणी पत्रिका, बर्ष ५८ बैंक ४.४३१ . -मारिकेबराडे। आपकी साधन गाढे मगनादेन पवाडे एकलाचि और काराममाथामें अनन्तधोरी। मर्जताती पवाड़े तथा कृष्णे पवाड़ा काबला(प्रजराती हाहित्यम स्वामो०१४)।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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