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________________ ४६६ सामीय वयण अनेयम ओषम वंदन होइ, क्षीण कलंकीय दीसइस्टीस प तपइन सोई ममडी बेउली आयजी कमलिनी लोचनि जीत जीमडी जगतगउंजीवन सक्जिन बोरइ ए बींत काव्य देता दाडिम बीजडा अधर ने जावी प्रवाला नवी दीपs से जल अंखडी कमलीनी जैसी हुई पापडी नासा सा शुक चैवडी ममहड़ी दीसई बेउ बाकुडी जो कि बहुना, कुमार जमलं कोई अप नहीं १ कई नेम कुमार दीसई देवकुमार दिनि दीपता र रतिपति जीवता ए आगे कवि का वसंत वर्णन बड़ा उत्कुष्ट है। आयुशाला में नैमि का पराक्रम देखकर सभी ने उनका विवाह करने का उपाय सोचा। कृष्ण की रानियों ने उन्हें जलक्रीड़ा मैं विवाह कसे को वाध्य किया। ऐसे ही अवसर पर कविता मौलिक उपमानों से सुन्दर वर्णन करता है।दों की ब्टा, काव्य युवमा व प्रकृति का frai fage आलंकारिकवर्धन अत्यन्त प्रासादिक बन पड़ा है: इन बचन पनि हरि हरदीका बाईला वसंत रितु काल रे afraft tarf परी करि सिंह मम करवाल है मार मार कापती व मुरीद मोरीय चरई मानंद रे म किनई नगर न रति राम्रा माता मन मरे २ माता मन गवेद र बडि भवन नरिंद freferrerous निसिदिन नवि गमई प
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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