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________________ कोबालि करई टहकरि रतिपाति दलि जयकार बनसवि गडिगड्याएं परिमल महिमया ए सौरम की मधुरता से प्राण रंग का परितृप्त होना बनश्री का फैलना, रति मधु माधवी का उल्लास, पाटल का परिमल और प्रमरोका मुंजार आदि का वर्णन अत्यन्त बहिकई ५ सोक्न केवडी केवड़ी सोइ वनमाहि, पहती व रति प्रा पायी माध्वी फाल न मा चंपकली दीसह ए कली नीकली पीलीय अगि, किरि प रयपि रपदीदीय नवीय करीय अनंगि दीपई ए राना कणयर दिनयर किरि अवतार पारणि पाउत पलि करइ मधुकार फोकली फलम बीजुरी व पुरीयहा सहकार बलवंग नारंग ना अंगमानई सहकार (काव्य) दीसह मुन्न बड़ा करि नवा माया ही बड़ा पुरमा र मन मला काहि बरवा बामला देसी कडिकडी मन की, भारी संती मिठी फूली वाडिन राबडी इषि माई बीमा राठी' अनेक विभिन्न वर्षों से कृति की अवमा कृषि ई है। वह रानियों का साथ वीड़ा, रानियों भागना मौका का वर्णन, यौवन मल्ल मोषियों का मधुमालमा भावि मी वर एक एक बहकर : मैपिवर बीमई बीपति सारे पोका माम मोपी राति सी विडं गाई रे - प्राचीन का :ग. बावरा।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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