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________________ ३२६ अभिव्यक्ति की इस काव्य की कसौटी है। राजपुत्रों के वन्य युद्ध उत्साहमूलक मुद्राओं का चित्रण बड़े प्रभावशाली बन पढ़े हैं: # afe feet साडा सरमु, केवि तुरंगम जान मर चक्र दूरी fafe areल पालय, किवि इथियार पडता फालइ पहिलं परम धरमह पुत्रो, जेड रहई मदि कोई शत्र म भी गया बेर व दुर्योधन मिडड इकड लोह पुरुष छड बक्रि पाच वाव न तुरंत राधा वेध करीउ दिलाउs, तिकड न कोई तीन अबाउड वीछे की मठकर, मरतु पापड करि भाइ रोसिया, रमर जोई देवी देवा efer aures गाजर गय हरिइ जीवइ जय जयवयण डीया चढवक कायर लोक संततमा मन कर सकोक जावे मी पहि(अ) अकालि जाने मुंद्र तुम्बा कालिकाल (स्वमी ५ g०१४ ) कवि ने स्वयंबर, नगर तोरम, अनेक वाइयों और उत्वों का वर्णन बड़ा प्रवाहपूर्ण बन पड़ा है: arata न हि भीवान, बिनवरो ि म पानी पेड़ मरि कीवा पोरण बंदरात नयी * बामप विि गमि मय ली सोनम व पोलिस पूरानिया प दिवादि परि परि होली ए बंद मरि पवार गरिव किरि मगरातरि वरी कवि के और पुरुष दोनों के रूप वर्षन में कलात्मकता मिलती है। पा का ईयारी है। होने नयन, सुरभित करी, किस्तूरी करके नहरों की इन मौरी की मत कर बरसी में
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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