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________________ १८७ हुना है। ठवणि पद ८०-८४ तक की बार कड़ी, ठवणि ८ पद (१०५-१०)में, यह एंव प्रयुक्त जमा है। समरारा भी वी भाषा में परमाकुल के १५ १६ मात्राओं के चरम फिर ॥ पात्राओं का इकाइ बरण, कमली रास प्रथा इद्विधराम (-४) में भी परणाकुल छड प्रयुक्त मा है। यह गेयता प्रधान है तथा आदिकालीन हिन्दी जैन कवियों की मौलिक विशेषता है। तीन कतियों के उद्धरण देसिप1- भरतेवर बाहुबली TE- (1) बूदी वि उबगार मयरो, धनक्षम कंचनरवनि पबरो अवर पवर किरि अमरपुरो (२) २. समरारा- (1) हरपिठ हरपार बीति पडता ए मधुमोलविकरे पमा दीवह नारि संघह, प जोवण उतावलीए । माउला बहिन बगिह बगुला प बागि प्रियगृहीए (२) - कम्ली : (1) अनलकुंड संथम परमार, शनिवार बाबू गिरिवर बाई पारो' इनकार इस रचना को कवि में बौपाई से मिनबंध करके प्रयुक्त किया है। शब्द इसकी परखा और देवता का प्रतीक है। भरतावर गाठी विनि स्वामियों की च और उनकी कुछ विस्तार इस प्रकार .. (1) वर्ष में आविषय बन्न --का प्रयोग हो TV विकार का प्रयोग होण-1) ( पि... बाई बरणा का farm ( 1) M) पिपरपावापाई (1) पगल टकमावि बैशी छब है। (Vaantरस्वती ( ५) - -माण पूरी . Tag.an
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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