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________________ आधुनिकता और राष्ट्रीयता चर्चा की जा सकती है। यह अन्तर व्यक्ति, समाज, राष्ट्र सभी में देखा जा सकता है। भारतवर्ष के स्वाधीन होने तक परिस्थितियाँ और थीं और आज की परिस्थितियाँ और हैं। पराधीन राष्ट्र अपनी प्राचीन स्वतंत्रता की स्मृतियों के आधार पर ही जी सकता है। इसीलिए ऐतिहासिक रूप में आधुनिक होते हुए भी ( अपने समय में ) उस समयका राष्ट्र अतीत के गुण गाता रहा और आधुनिक स्थिति से ( पराधीन स्थिति से ) मुक्ति पाने में प्रयत्नशील रहा । वैसे तो प्रत्येक युग का समाज अपने समय की आधुनिक स्थिति से जूझता है। स्वाधीनता के पहले भारतवर्ष की आधुनिकता ऐतिहासिक अनिवार्यता का परिणाम थी। उस समय भारतीय जनता अपने वर्तमान को अपनी इच्छानुसार ढालने में और उसके प्रति प्रवृत्तिमूलक दृष्टिकोण अपनाने में असमर्थ थी। यह स्थिति अब नहीं रही है। आज का भारत निर्माण कार्य में लगा हुआ है। वह स्वतंत्र है और अपनी इच्छानुसार योजनाएँ बनाकर उन्हें कार्यान्वित कर रहा है। कल तक हम अंगरेजों को दोष देते थे। अपनी विवशताओं का बखान करते थे। विवशताओं से मुक्ति पाने के लिए प्रयत्नशील थे। किन्तु अब वह स्थिति नहीं रही। आज देश का प्रबुध्द वर्ग अपने देश के सम्बन्ध में चिन्तन कर रहा है। एक ओर उसे अपनी स्वतंत्रता को कायम रखना है , तो दूसरी ओर विघटनशील प्रवृत्तियों को रोक कर देश को समृध्द एवं खुशहाल बनाना है। विश्व में तथाकथित कहलाने वाले अन्य राष्ट्रों के संदर्भ में हमें अपने राष्ट्र को देखना है। अपने इतिहास के संदर्भ में हम कितने आधुनिक हो गए हैं और विश्व की वर्तमान स्थितियों के संदर्भ में हम कितने आधुनिक है, यह देखना आज परम आवश्यक हो गया है। आधुनिकता के सम्बन्ध में विचार करते समय इन सब बातों को और ध्यान जाना स्वाभाविक है। आधुनिकता का सम्बन्ध वैज्ञानिक उपलब्धियों से है; केवल उपलब्धि मात्र नहीं बल्कि उन उपलब्धियों के आधार पर बदलते गए दष्टिकोणों को अपनाने में है। इस अपनाने में प्राचीनता के मोह से मुक्ति पाना है और वर्तमान उपलब्धियों में आस्था का निर्माण करना है। यह एक ऐसा प्रश्न है, जिस पर एक मत होना कुछ कठिन प्रतीत हो रहा है । वैज्ञानिकता केवल आज भौतिकी क्षेत्र में या पदार्थ के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि मस्तिष्क एवं आत्मा के क्षेत्र में भी देखी जा सकती है। बटैंड रसेल का यही कहना है । वे लिखते हैं- " हम उस स्थिति में आ रहे हैं जब मस्तिष्क को, आत्मा को और पदार्थ को एक ही समझा जायगा, और इस दृष्टिकोण के स्वीकार कर लिए जाने पर इनके बीच वरीयता की कोई आवश्यकता ही
SR No.010027
Book TitleAadhunikta aur Rashtriyata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Bora
PublisherNamita Prakashan Aurangabad
Publication Year1973
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Social
File Size10 MB
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