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________________ निर्वाह की भावना से ओत-प्रेत चेष्टा' का दावा किया गया है। वास्तव में व्यक्ति भी महत्वपूर्ण है और समाज भी। कोरा व्यक्ति और उसकी केवल अपने प्रतिनिष्ठा पशुत्व है । उसकी अपने में कोई सार्थकता नहीं। और, कोरा समाज दीमकों का ढेर है । कलाकार को दोनों में सन्तुलन स्थापित करने का कठिन कार्य सम्पन्न करना होता है, क्योंकि दोनों का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है । इस दृष्टि से प्रसिद्ध यूरोपीय दार्शनिक कैण्ट के 'unsociab: sociability' शब्द ध्यान में रखने योग्य हैं । यद्यपि हिन्दी के आधुनिकतम कहानीकारों ने सामाजिक यथार्थ को और मानव जीवन की विभिन्न समस्याओं की उसके बहुविधिय परिपार्श्व में चित्रित करने का प्रयत्न किया है, किन्तु सब मिलाकर आत्मपरक विश्लेषण की तुलना में उसका स्वर सशक्त नहीं बन पाया है। देखा यही जाता है कि वह एक नारा बन गया है, जो प्रत्येक लेखक की प्रतिबद्धता में शामिल है और उस नारे को मान्यता पाने का अस्त्र समझकर सभी कहानीकार इस विधा में आए हैं, किन्तु आज के राजनीतिक खिलाड़ियों की भाँति उन्हें अपनी प्रतिबद्धता बदलते देर नहीं लगी है । यह देखकर मैं बिना किसी संकोच के मह सकता हूँ कि तमाम लम्बी-चौड़ी बातों के बावजूद, हम प्रेमचन्द जैसा व्यक्तित्व उत्पन्न करने में असफल रहे हैं। हाँ, दो-तीन कहानीकारों में प्रेमचन्द जैसी मानवीय संवेदनशीलता, यथार्थ चित्रण एवं मानवतावादी दृष्टिकोण अवश्य ही विकसित हो रहा है, पर अभी से उनके सम्बन्ध में कोई निर्णय देना उचित नहीं होगा। . प्रस्तुत पुस्तक में पिछले पन्द्रह वर्षों के प्रमुख कहानीकारों की उपलब्धियों के आधार पर ही आज की कहानी का विवेचन करने की चेष्टा की गई है । इसमें सभी कहानीकारों की सूची देना कोई उद्देश्य नहीं रहा, किन्तु प्रयास यही रहा है कि दोनों ही दशकों के महत्वपूर्ण कहानीकार छूटने न पाएँ । हो सकता है कुछ कहानीकार पुस्तक में अपने नाम न पाकर आक्रोश प्रकट करने लगें । किन्तु मैं उनकी उदारता की.
SR No.010026
Book TitleAadhunik Kahani ka Pariparshva
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size18 MB
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