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________________ प्रणय-कम्पकी भीनी सिहरन , मृगनयनीकी तीखी चितवन , प्यार-भरी इन रातोंमें है सदा किलकती छलनी माया , मुझसे कहती मेरी छाया। मेरे अन्तरतसके पटपर इन्द्रधनुपकी नवल तूलिका सुख-दुखकी ले मृदुल भूमिका विस्मृत जीवनके चित्रोंको करनी रेखांकित है सत्वर , मेरे अन्तरतमके पटपर। शैशवकी वालारुण आभा / यौवनकी मदमाती छाया रतनारे इन नयनोंसे है अश्रुविन्दु छलकाती मृदुतर, मेरे अन्तरतमके पटपर। पुण्य-पापकी गा गाथाएँ प्यार-भरी नूतन आशाएँ नीरव निर्जन वन्य प्रान्तमें इठलाती हैं सरिता-तटपर , मेरे अन्तरतमके पटपर। पूछ रहे क्या मेरा परिचय ? मैं कवि हूँ कविता करता हूँ, मुरदोंमें जीवन भरता हूँ, जीवन-दीप जलाकर अपना प्राणोंका करता हूँ विनिमय / पूछ रहे क्या मेरा परिचय ? - 215 -
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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