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________________ कवि-गर्वोक्ति अतुलित शक्ति मेरी कौन जानता है कहो, चाहूँ तो त्रिलोकमें नवीन रस भर दूं; भर दूं महान् ज्ञान विपुल विलास हास, विशद विकासका विचित्र चित्र घर दूं। विहँस न पाई जो प्रसुप्त सदियोंसे पड़ी ऐसी भावनाओंका प्रकाश दिव्य कर दूं; मेरी मति माने तो तुरन्त मन्त्र मारकर देशके अशेष व्यपदेश क्लेश हर दूं।१ एस विषम विषले पार तथ्यसे हलाहलको सार-हीन कर अस्तित्व भी मिटा दूं मैं ; जटिल समस्या या कि कठिन पहेली क्या है विधिके विधानका भी गौरव घटा दूं मैं। शंखनाद जयपूर्ण पार हो क्षितिजके भी, अचल हिमाचलको सचल बना दूं मै ; कल्पना-किले में जिसे बाँधना असम्भव हो सम्भव बना दूं यदि शक्ति प्रगटा दूं मै ।२ - १५५ -
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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