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________________ श्री अमृतलाल जी, 'फणीन्द्र' श्री अमृतलालजी 'फणीन्द्र' टीकमगढ़ स्टेट और झाँसी जिलेकेप्रमुख जनप्रिय साहित्यिक श्रीर सुकवि हैं । श्रापकी कविताएँ, कहानी, एकाङ्की तथा लेख सार्वजनिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं । आपकी रचनाएँ मामिक और अग्निगर्भ हैं । आपकी 'विश्वक्रान्ति' (नाटक) और 'रैयतकी लड़ाई (आल्हा ) - यह दो रचनाएँ शीघ्र ही प्रकाशित होकर पाठकोंके हाथमें पहुंचेंगी। 'फणीन्द्रजी साहित्यिक ही नहीं, बल्कि एक उदीयमान राजनीतिककार्यकर्ता भी हैं । श्राप श्रोरधा स्टेटके एम० एल० ए० तथा 'ओरछा सेवासंघ के सहायक मन्त्री हैं । ग्रापसे साहित्य, समाज तथा देशको अनेक आशाएँ हैं । क्रान्तिका सैनिक में अग्रिम युगकी अमर क्रान्ति सैनिक, संसार हिला दूंगा, मानवतापर मर मिटनेकी घर घरमें आग जला दूंगा । यो सम्हलो शोपण कर्ताओ, मानव वन मानत्र खाया है, दानवता दलने मानवताका दूत सामने आया है । तुमने मज़दूरोंको तरसाया मुट्ठी-मुट्ठी दानोंको, टुकड़े-टुकड़ेपर कटवाया तुमने जीवित सन्तानोंको । सड़कोंपर मुर्दा मजदूरोंको देख-देख सुख पाते तुम कंगालोंकी भूखी टोली लख फूले नहीं समाते तुम । सोचा तुमने भी नहीं तनिक आखिर इन्सान तुम्हीस हैं, ये तेनिक अन्नके भूखे हैं ये तनिक माँड़के प्यासे हैं । जव चला तुम्हारा वस तुमने मुंहमसे छीना कौर मेरा । ठुकरा, ठुकराकर दण्डित अपमानित कर के छीना ठौर मेरा । १५६ www
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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