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________________ सुख-शान्ति चाहता है मानव पीड़ाकी गोदीमें सोया, खेला दिलके अरमानोंसे , विहँसा तो हाहाकारोंमें, रूठा तो अपने प्राणोंसे । आध्यात्मिक पथपर बढ़नेको, अव क्रान्ति चाहता है मानव । सुख-शान्ति० सव देख चुका नाते-रिश्ते, अपनोंको भी देखा-परखा , सुखके साथी सव दीख पड़े, दुखमें न कोई बन सका सखा। दुनियाके दुखसे दूर कहीं एकान्त चाहता है मानव !! सुख-शान्ति. प्रोत्साहनके दो शब्द मिले - आशीष मिले स-करुण मनकी, प्राणोंमें जागें नये प्राण भर दें जो लहर जागरणकी। जीवन रहस्य समझा दें वह दृष्टान्त चाहता है मानव । सुख-शान्ति० जीये तो जीये ठीक तरह मुरदापन लेकर लजे नहीं , मानव कहलाकर दीन न हो श्री मानवताको तजे नहीं। इसपर भी आ बनती है तव प्राणान्त चाहता है मानव । सुख शान्ति चाहता है मानव । - ७६ -
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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