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________________ vakaastatestastmtarteelataletastaantasangathmandutodayashilosoranslakathakatana k lolarlalah kharabtalatahikitinathththairmi ६७६ पत्रप्रन्त्र मन्त्रण प्रणश्रम मन्त्र पत्र-यन्त्रनयन्त्रन्यायधन्यवनप्रनम्न स्तोत्र-विभाग ..mmmmmmmon . . . ... ... .. ॐ मुनयो मुनिप्रवरा रिपुविजय दुर्भिक्षकान्तारेषु दुर्गमागेंषु रक्षन्तु वो नित्यं स्वाहा । ॐ श्री नाभि जितशत्रु जितारि सम्बर मेघ धर प्रतिप्ठ । महसेन सुग्रीव दृढ़रथ विष्णु वासुपूज्य कृतवर्म सिंहसेन भानु विश्वसेन सूर सुदर्शन कुम्भ सुमित्र विजय समुद्र विजय अश्वसेन सिद्धार्थ इति वर्तमान चतुर्विशति जिन जनकाः। ___ॐ श्री मरुदेवी विजया सेना सिद्धार्था सुमङ्गला सुसीमा पृथिवी माता लक्ष्मणा रामा नन्दा विष्णु जया श्यामा सुयशा सुव्रता अचिरा श्री देवी प्रभावति पद्मा वप्रा शिवा वामा त्रिशला इति वर्तमान जिन जनन्यः । ॐ श्री गोमुख महायक्ष त्रिमुख यक्षनायक तुम्बरु कुसुम मातङ्ग विजय अजित ब्रह्मा यक्षराज कुमार षण्मुख पाताल किन्नर गरुड गन्धर्व यक्षराज कुबेर वरुण भृकुटि गोमेध पार्श्व ब्रह्मशान्ति इति वर्तमान जिन यक्षाः। ॐ चक्रेश्वरी अजितबला दुरितारी काली महाकाली श्यामा शान्ता भृकुटि सुतारका अशोका मानवी चण्डा विदिता अंकुशा कन्दर्पा निर्वाणी बला धारिणी धरणप्रिया नरदत्ता गान्धारी अम्बिका पद्मावती सिद्धायिका इति में वर्तमान चतुर्विंशति तीर्थंकर शासन देव्याः शान्ताः शान्तिकरा भवन्तु स्वाहा। ॐ ह्रीं श्रीं धृति मति कीर्ति कान्ति बुद्धि लक्ष्मी मेधा विद्या साधन प्रवेश निवेशनेषु सुगृहीतनामानो जयन्तु ते जिनेन्द्राः । ॐ रोहिणी प्रज्ञप्ति वज्रशृङ्खला वज्रांकुशा अप्रतिचक्रा पुरुषदत्ता काली * महाकाली गौरी गान्धारी सर्वास्त्रमहाज्वाला मानवी वैरोट्या अच्छुन्ना मानसी महामानसी एता षोड़श विद्या देव्यो रक्षन्तु मे स्वाहा । ___ॐ आचार्योपाध्यायप्रभृतिचातुर्वर्णस्य श्री श्रमणसंघस्य शान्तिर्भवतु Anded ldkikat alreadinidadtadirakoria ka oolkarjankakairwin Sutalathki fotokarokte: nokarkiata lodaalatakiantak katalel de lonkonkak-Tokatok the latola प्रधानमन्त्रधश्रधश्रश्रयन्नयनत्रन्त्र नम्वन्धधधश्रधश्रधश्रश्रवनचन्न धचत्रनयनानन्त्रमन्त्री IITE ॐ तुष्टिर्भवतु पुष्टिर्भवतु। ॐ ग्रहाश्चन्द्रसूर्याङ्गारक बुद्ध बृहस्पति शुक्र शनैश्वर राहु केतु सहिताः सलोक पालाः सोम यम बरुण कुबेर वासवादित्य स्कन्द विनायका ये चान्येऽपि ग्राम नगर क्षेत्र देवतादयस्ते सर्वे प्रीयन्तां, प्रीयन्तां अक्षीण कोप कोठागारा नरपतयश्च भवन्तु स्वाहा । ॐ पुत्र मित्र भ्रातृ कलत्र सुहृत स्वजन सम्बन्धि वन्धुवर्ग सहिता नित्यं tota1 14.1.kaka ka fatat ..
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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