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________________ astetvastatestakalatakaaspitidainathpastolest BALLilanileitendonlailestiatelilaletialalentel t l imilailimilailileanl R EAMMARKEstalksat a litictimillml- ६०४ जैन-रत्नसार तुझ बिन है नहीं और । सूरत अति प्यारी पावे हृदय अनन्द, दर्शन से भय भागे दूर होय दुख दन्द ॥१॥ इन्द्र अहमिन्द्र सभी नत मस्तक हो जाय, इन्द्राणी भी मिलकर जोडे हाथ मिलाय । प्रभुवर की पुण्याई गावे हिलमिल जोर, करे अप्टाह्नि महोत्सव देव करे शोरा शोर ॥२॥ पुण्डरि गिरवर में पावे धरम अपार, चार मास तक रहिया श्रमण मुनी परिवार । शुध श्रावक ने तारे सुना प्रभू उपदेश, पय अमृत से बढ़कर वाणी अधिक विशेष ॥३॥ सामायिक पडिक्कमणो करिये मन शुद्ध भाव, अभिनन्दन जिन ध्यावत मिटे करम का ताव । शुद्ध समकित पावे होवे निज कल्यान, श्री रत्नसूरि के शिष्य सूरज मल गुण गान |el श्री सुमति जिन स्तुति (चउवीसे जिनवर ) सुमती जिन वंद, उठे नित परभात । रखिये सदा मनमें, दुर दुःख । होय जात ॥ जनम सुदी वैशाखें, अष्टमि दिन में आय । पिता मेघरथजी, मात सुमंगल थाय ॥१॥ जनमे नगरि विनीता, उत्तम इक्ष्वाकु वंश । सुदि नवमि वैशाखें, संयम लियो निःसंश ॥ लञ्छन क्रौंचे सोहे, दूर किये दुःख दन्द । कञ्चन वरणी काया, शतत्रय धनुष सोहन्त ॥२॥ चैत्र सुदी पूर्णिमा, प्रगट्यो ज्ञान अपार । गणधर शत कहिये, त्रिलक्ष सहस्र वीस अनगार ।। लक्ष पंच सहस त्रीसे, श्रमणी हुवो परिवार । श्रावक श्रावकण्यां मिल अप्ट, लक्ष सरदार ॥३॥ महाकाली शासन देवी, और तुम्बरू यक्ष । इनके समरण से, कष्ट जाय परतक्ष ॥ मारग वदि एकादशी, लियो परम पद स्थान । . श्री रत्नसूरि शिष्य मोती का, तव चरणन में ध्यान ॥४॥ श्री पद्म प्रभु स्तुति (बलि बलिहुं ध्यावू ) जुग जुग यहि चाहूं पाऊं पद्म प्रभु धीर । कार्तिक बदि वारस जनम्यां प्रभु वड़ वीर ॥ कौशाम्बी नगरी श्री सुसीमा मात । राजा पिता श्रीधर जी इक्ष्वाकु वंशना जात ॥१॥ छठे जिनवर को पूजो विविध प्रकार । LRASEAlkalotadakaSHREEsta Meartstateraastatiotaratmatatistialistinatituatialadalantististatistiatickmake th-EARNAEtHolitika a s.
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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