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________________ • स्तुति-विभाग है रंजन देशन तेहना गुण पैंतीस ॥ अगणित ऋद्धिधारी आचारी मां ईश। एह गुणनां धारक बंदू जिन चौवीस ॥२॥ सुज्ञ अरथ अनोपम जिन भाषित सिद्धान्त । स्याद्वाद नयादिक हेतु युक्ति नवि भ्रांत ॥ पाप करदम पाणी सद्गतिनी सहनाणी । सुणिये नित भविका आगम केरी वाणी ॥३॥ शासननी साची देवी सानिधकारी । दुःख कष्ट निवारण सेवी जे सुखकारी ॥ साचे मन समरे ते सुख लाभ अपारी । जिन लाभ पयंपे होज्यो जय जयकारी ॥४॥ श्री सम्भव जिन स्तुति (निरुपम सुखदायक) ___संभव जिनवर तुंही हितकर, सावत्थी नगरीनो वासी जी। जितारि पिता अरु मात सेना के, चौद सुदी मग जनम्यां जी। चार शत धनुष शरीर प्रमाणे, कंचन वरणी काया जी । छट्ठम तपसे जिन संयम लीनो, लंछन अश्व प्रभु पाया जी ॥१॥ चौदस मारग सुदि जनम लियो, पूर्ण मारग में दीक्षा जी । चौद वरस प्रभु छद्म विराजे, उपसरगे सहन करिया जी ॥ कार्तिक वदि पंचम केवल पायो, प्रभु वाणी ने पसरायी जी। साठ पूरब आयु प्रमाणे, चैत्र सुदी पंचम गति गामी जी ॥२॥ शत दो गणधर प्रभुजी के साथे, दोय लाख श्रमणना धारी जी। तीन लाख सहस छत्तीस प्रमाणे, श्रमणी गुण गण भारी जी ॥ दोय लाख सहस त्रयाणवे श्रावक, इम परिवार सूं वाध्यो जी । सहस छत्तीस लाख श्रावकण्या, भव्य जीवा ने पार उतारो जी ॥३॥ शासन यक्ष त्रिमुख कहलाये, दुरितारी शासन देवी जी । इनकी भगती नित नित करिये, दुर हरे दुख दुरितो जी ॥ संघ नायक श्री रत्न सुरीश्वर, खरतरगच्छ आचारो जी। तास शिष्य सुवाचक सूरजमल, पावे नित सुख भंडारो जी ॥४॥ श्री अभिनन्दन जिन स्तुति (चउवीसे जिनवर) अभिनन्दन जिनवर वन्दु नित उठ भोर, दूजे माधे दिन जनमें มใดใด ใกไetนไeได้คะ ไดไไดไไไไไไไดไไไไte ในสัceใดใดใดใช้ในครัวในไดไคได้ไม่โดนโดนไกดไลังไoe ใ ห้ไรในไตได้อะไรในใจไปไดไไไไไไไไไไไไไไไไไไไไไดไไไหนไนนะ
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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