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________________ AKKKKKKKKKKLatest i king Trailernationaiththarint स्तुति-विभाग अनमत्रप्रप्रन्न amarekararakatkardoaashadhekshanMalaintslilonsoonlisahaMahakaluk नग्रक्रमप्राप्रमात्र प्रत्रप्रपत्र प्रत्र इनके वचनों पे चलिये, पावो सुक्ख अपार ॥ दुःख दारिद्र नाशे पावें लील विलास । इनकी भक्ति से हो संसार भ्रमण का नास ॥२॥ वर्ण सुवर्ण सोहे दो शत धनुष प्रमाण । पदम लञ्छन युत जेठ तेरस सुदी आण ॥ भगवन दीक्षा धारी छद्मकाल षट् मास । चैत्र सुदी पूनम ने केवल ज्ञान प्रकास ॥३॥ वलि यक्षने समरो कुसुम यक्ष सुखकार । प्रति दिन भक्ती से ध्यावे दिल मांहि धार ॥ सुख सानिध कीजे देवी श्यामा मात । सूरज के हित वञ्छू जिन रत्नसूरि विख्यात ॥४॥ श्री सुपार्श्व जिन स्तुति (प्रणम परम पुरुष परमेसर) श्री सुपार्श्व जिनेश्वर जगके हितकर, बनारसि नगरी में आया जी।। राणी पृथ्वी नृपति प्रतिष्ठ से, जेठ सुदी चौथ में जाया जी ॥ कञ्चन घरणे काया सोहत, वंश इक्ष्वाकु बताया जी । शत दो धनुष देह प्रमाणे, स्वस्तिक लञ्छन पाया जी ॥१॥ जेठ सुदी तेरस संयम लीनो, जगत भव भय नाशें जी । छद्मस्थकाल नव मास विराजे, प्रगट्यो ज्ञान अपारें जी ॥ पञ्च नव गणधर आपके साथे, तीन लक्ष श्रमण परिवारें जी। तीन सहस लख चतुर प्रमाणे, साधवियां समुदायें जी ॥२॥ दोय लख सहस सतावन श्रावक, भगवत् वचन • माने जी । तीन सहस लख उनचासे श्रावकण्यां, प्रभुजी को आय वधावें जी ॥ सर्वायू पूरब बीसे लक्षे, अमृत वाणी सुनाया जी । फागुन वदि सप्तमि दिन में, सिखर सम्मेत सिधाया जी ॥३॥ का मातंग यक्ष करे प्रभुजी की सेवा, संघ का कष्ट निवारें जी । शान्ता देवी शासन के हित, दुर करे सब दुरितं जी ॥ खरतरगच्छ में आचार्य यतीश्वर, श्री रत्नसूरि सुहाया जी । तास शिष्य हितचिन्तक कहिये, मोतीचन्द गुण गाया जी ॥४॥ श्री चन्द्र प्रभु जिन स्तुति (सुर असुर वंदिय) चन्द्रपुरि में चरण चरचित, राय महसेन व्यवस्थितम् । वर शुभ्र kalkokhakekeliekistarakahakiahsalonloelholarkonkakolhalkslilinkslashaliroinatanderpasasisaabetaa Kran i riandialirlasticticinnicatihlu feels
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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