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________________ Saina- स्तुति-विभाग thakathk kat kartelwk.I .sal.krrakamkkakeel pakekaturaletaketakalankarakatekakakakakakakakakakaki. kakka karki andamalankaha..la.ka .karka larka kaiase सिद्धाचल की थुई पंडरगिरि महिमा, आगम मा परसिद्ध । विमलाचल भेटी, लहिए अविचल ऋद्ध ॥ पंचम गति पोहता, मुनिवर कोडा कोड । एणे तीरथ आवी, कर्म विपाक विछोड ॥१॥ शत्रुञ्जय स्तुति सेजा गिरि नमिये, ऋषभदेव पुंडरीक । शुभ तपनी महिमा, सुने गुरु मुख निरभीक ॥ शुद्ध मन उपवासे, विधिसू चैत्य वंदनीक । करिये जिन आगल, टाली वचन अलीक ॥१॥ शक्रस्तवनादिक प्रथम तिलक दस वीस । अक्षत गिनती से चढ़ता तिम चालीस ॥ पंचासनी पूजा भाखइ इम जगदीस । तेहि जनित प्रणमं, स्वामी जिन चौबीस ॥२॥ सुदि पक्षनी पूनम, चैत्र मास शुभ वार । विधि सेती लहिये, आगम साख विचार ॥ इम सोले वरस लग, धरिये ध्यान उदार । करतां नरनारी पामें भव नो पार ॥३॥ सोवन तन चरणे, नयने तिम अरविंद । चक्केसरि देवी सेविय नर सुर वृन्द ॥ कामित सुखदायक, पूरय मन आनन्द । जंपे गणनायक, श्री जिन लाभ सुरिन्द ॥४॥ सीमन्धर स्तुति मन सुद्ध वंदो भावे भवियण, श्री सीमंधर राया जी । पांच सौ धनुष प्रमाण विराजित, कंचन वरणी काया जी ॥ श्रेयांस नरपति सत्यकी नंदन, वृषभ लंछन सुखदाया जी। विजय भली पुक्खलावइ विचरे, सेवे सुरनर पाया जी ॥१॥ काल अतीत जे जिनवर हुआ, होस्ये वलिय अनंता जी । संप्रतिकाले पंच विदेहे, वरते वीस विचरंता जी ॥ अतिशय वंत अनंत ३ जिनेसर, जग बंधन जग त्राता जी। ध्यायक ध्येय स्वरूप जे ध्यावे, पावे 3 शिव सुख साता जी ॥२॥ मोह मिथ्यात तिमिर भव नासन, अभिनव hta.larka kakasathkhtakalanih triph hariorthatantrkathalalalalaminaatantankibk-la-kakikattorinkuntalathalatathiantaliakuntalal-test-tantantialashtakarkastastelmistar ternata ....... Pat
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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