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________________ ।।। ... ........... .. Hala.malialHANaMana-fimlipinfimli/ASAlali. Timlain-lamlalamlinnarlimlertainmlilasanleofulhulalbela.TRATulnilnla..laletaulilainlalloininda.lalirl.lnirani.im.lifehlmekinili. जैन-रनसार www......... सूर समाणी जी । भवोदधि तरणी मोक्ष नसरणी, नयनिक्षेप पहाणी जी ॥ ए जिनवाणी अमिय समाणी, आराधो भवि प्राणी जी ॥३॥ शासन देवी सुरनर सेवी, श्री पंचांगुलि माई जी । विघन विदारण संपति कारण, सेवक जन सुखदाई जी ॥ त्रिभुवन मोहनि अंतरजामनि, जग जस ज्योति सवाई जी । सानिधकारी संघने होयज्यो, श्री जिनहर्ष सहाई जी ॥ell द्वितीया की स्तुति मही मंडणं पुण्ण सोवण्ण देहं, जणाणं दणं केवलणाण गेहं । महाणंद लच्छी बहु बुद्धिरायं, सुसेवामि सीमंधरं तित्य रायं ॥१॥ पुरा तारगा जेह जीवाण जाया, भविस्संति ते सव्व भव्वाण ताया। तहा संपयं जे जिणा वट्टमाणा, सुहं दितु ते मे तिलोयप्पहाणा ॥२॥ दुरुत्तार संसार कुव्वार । पोयं, कलंका वली पंक पक्खाल तोयं । मणो वंछियच्छे सुमंदार कप्पं, जिणंदागमं वंदिमोसु महप्पं ॥३॥ विकोसे जिणंदाण णंभोजलीणा, कलारूव लावण्ण सोहग पीणा । वहं तस्स चित्तंपि णिचंपि झाणं, सिरी भारई देहि मे सुद्ध णाणं ॥४॥ पंचमी को स्तुति पंच अनंत महंत गुणाकर, पंचम गति दातार । उत्तम पंचम तप विधि वायक, ज्ञायक भाव अपार ॥ श्री पंचानन लंछन लंछित, वंछित दान सुदक्ष । श्री वर्धमान जिनन्हें बंदो, ध्यावो भविजन पक्ष ॥१॥ पूरण चन्द्र महाश्रव रोधक, वोधक भव्य उदार । पंच अणुव्रत पंच महाव्रत, विधि-विस्तारक सार ॥ जे पंचेन्द्रिय दम शिव पहुंता, ते सगला जिनराय । पांचम तप घर भवियण ऊपर, सुथिर करी सुपसाय ॥१॥ पंचाचार धुरंधर जुगवर, पंचम गणधर जाण । पंच ज्ञान विचार विराजित, भाजत मद पंच वाण ॥ पंचम काल तिमिर भव मांहे, दीपक सम सौभंत । पंचम तप फल मूल प्रकाशक, ध्यावो जिन सिद्धंत ॥३॥ पंच परम पुरुषोत्तम सेवा, कारक जे नर नार । निरमल पांचम तप ना धारक, तेह भणी सुविचार ॥ श्री ।.IMILAL.ni.kilah Imhidule .sh laluk tudel. hindan.d.bhudi.bate.lalalahul ll .hdallahi hI llul.hI lilahhhe Ilahi tmkalaal.. bha B ARRAalhan. h u S A I h e MARR
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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