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________________ నరకుడు దhithiM మనందనుడు ४७२ www womurwwww.. urinarwarivanivaawenes Katrina-trinakaisierreicketpaatak जैन-रनसार करजोड़ी सेवक गुण गावे, मन वांछित पावे । श्री जिनचन्द्र कृपा कर मो पर, मंगल माला घर आवे ॥ जय० ४॥ कुशल गुरु आरती जय जय आरति सत् गुरु तेरी, कर पूरण आशा मन मेरी । जि लागर जगनन्द विख्याता, जयति श्री वर सतगुरु माता ॥१॥ संवत तेरसें छतीसे जाया, निव्यासी स्वर पदवी पाया ॥२॥ वीर जिनेश्वर चौपन ठामे, श्री जिन कुशल सुरीश्वर नामें ॥३॥ छाजेहड गोत्रीय कहता, पटधारी जिनचंद मुनिंदा ॥४॥करजोड़ी सेवक गुण गावें, पूजत मन वंछित फल पावे ॥५॥ रत्नसूरिजी की आरती जय जय आरति रतन सुरिन्दा, अनुभव पायो आप जिनंदा ॥ज०१॥ भी शान्ति दान्ति विद्याके सागर, संघका काटो भवभय फंदा ॥ ज० २ ॥ रङ्ग सूरिके गच्छमें सोहे, खरतर गच्छको परम आनंदा ॥ ज० ३ ॥ सूरज तुमको हृदयसे ध्यावे, आरति हरो गुरु, सदा मुनिंदा ॥ ज० ४ ॥ चक्रेश्वरी देवी की आरती __जय जय आरती देवी तुमारी, नित्य प्रणमूं हूँ तुम चरणारी ॥ जय० १॥ श्री सिद्धाचल गिरि रखवाली, नाम चक्केसरी जगसौ ख्याली ॥ जय० २ ॥ सुविहित गच्छ नी शासन देवी, सकल संघने सुक्ख करेवी ॥ जय० ३ ॥ निलवट टीलडी रत्न बिराजे, काने कुंडल दोय रवि शशि छाजे ॥ जय० ४ ॥ बांहे बाजूबंध वोरखा सोहे, नील वरण सहु जन मन मोहें ॥ जय० ५ ॥ सोवन मय नित्य चूड़ी खलके, पायल बूंघरडा घम धमके ॥ जय० ६ ॥ वाहन गरुड़ चढ्या बहु प्रेमे, तुझ गुण पार न पामू केमे ॥ जय० ७ ॥ चूनडी जडमां देह अति दीपे, नवसरा हारे । जग सहु जीपे ॥ जय० ८ ॥ नित नित मानी आरती उतारे, रोग शोग भय दूर निवारे ॥ जय० ९ ॥ तसु घर पुत्र पुत्रादिक छाजे, मन बंछित सुख संपद राजे ॥ जय० १०॥ देवचन्द मुनि आरती गावे, जय जय ।। मंगल नित्य वधावे ॥ जय० ११ ॥ tak-HEMERNAMAMALocatinianimaterinarainlisatikaliNilikinil
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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