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________________ thank నన దుండashatanathashtag ४७१ NAAMr.RAPAaran MAAAAAAM... narmanner. sha आरती-विभाग कारा ॥ जय० ॥ अष्टा पद गिरि भानु अवलंबन चौबीस जिन ध्याया। पनरह सौ तिहत्तर तापस, ते सहु समझाया ॥ जय० १॥ दी दीक्षा जिन को निज कर से, वे शिवपद पाया। अन्त वीर संयम नेह त्याग कर, * केवल उपजाया ॥ जय० २॥ पद्मोदय कहे बारह वर्ष पर, पंचम गति पाई। दिलीप चरण से करजोड़ी, जय शिवपद दाई ॥ जय० ३ ॥ सुधर्म गणधर आरतो जय जय पटधारी, भविजन शुभनिस्तारी, शिवसुख दातारी ॥जय॥ पंचम गणधर सुधर्म स्वामी, पटधर पट पाया। वीर प्रभू निर्वाण गये पर, शासन दीपाया ॥ जय० १ ॥ जिन भाषित त्रिपदी अनुसारे, पूरब विस्तारे। द्वादशाङ्ग उपदेश करीने, भवियण कू तारे ॥ जय० २ ॥ निज गुरु सेती वीस वरष पर, पाम्यो शिव थाने। पद्मोदय गुरु चरण पसाये, दिलीप लहे ज्ञाने ॥ जय० ३॥ श्री गुरुदेव आरती जय जगदीश हरे, ॐ जय जगदीश हरे । जय जय गुरुदेवा, ॐ जय जय गुरुदेवा । आरति हरो नित एहवा, सुख सम्पति मेवा ॥ जय० १॥ कुमति निवारन सुमति बधारन, पावन गुरु सेवा । कुशल करो गुरु सेवक पर सुख सानिध देवा ॥ जय० २ ॥ गुरु कल्पवृक्ष सम वांछित पूरन, दुःखमें सुध लेवा । संकट कष्ट मिटाय सबन के,दें समकित मेवा ॥ जय० ३ ॥ श्री जिनदत्त कुशल गुरुके, पद पङ्कज सेवा । श्री रत्नसूरिके शिष्य प्रवर हैं, सूरज यति देवा ॥ जय० ४ ॥ मणिधारी जी की आरती जय जय मणिधारी, आरती करूं हितकारी, सुख सम्पति कारी ॥ जय० १॥ गुणमुनि आगर, महिमा सागर, भविजन हितकारी । दीन दयाल दया कर मो पर, जिन शासन वारी ॥ जय० २॥ ग्यारेसे सत्तानवे वर उपनी हरष वधाई । बारसे तेतीसे वरर्षे, सुर पदवी पाई ॥ जय० ३ ॥ Mooshakikatackpointroloneliokistreliminaranchalilarakarnadaniliaonlishackintoleralalahinilahuchshindisaniliairkarkikikashaliliakshanilioashli-Niskconolisanlodka k kakhaalankpadukonkannadataaradhan
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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