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________________ ektarakshabanthik REAKisan K olhalasiah KKRE AREntsase Banthi .aniran.animal . आरती-विभाग चक्रेश्वरी देवी की आरती जय जय जिनपद सेवन कारक, जय जय जगदंबे । अहनिशि तुझ पद समरन, दिल विच ध्यान धरे ॥ जय० १ ॥ भविजन वंछित पूरन सुरतरु, चक्रेश्वरी अंबे । बसु भुज शोभित कनक छवी तनु, सेवित सुर वृन्दे ॥ जय० २ ॥ पंचानन तिम खगपति वाहन, आयुध हस्त धरे । ऋद्धि वृद्धि नित सेवक पावत, आनंद संघ करे ॥ जय० ३ ॥ यक्षराज की आरती ___जय जय ऋषभ पदाम्बुज सेवक, जय जय यक्षराया, शासनके तुम रक्षक भविजन सुखदाया ॥जय० ॥ कामगवी जिन वंछित दायक, कंचन वरण सुहाया। संकट विकट निवारण कारण, वर कुंजर चढ़ि आया ॥ जय० २ ॥ उदधि भुजा करि शोभित तनु छवि, गुणनिधि सुरराया। आरत हरण करन आरती श्री संघ हुलसाया ॥ जय० ३ ॥ भैरव आरती जैन के उद्योत भैरूं समकित धारी । शान्ति मूरति भविजन सुखकारी ॥जैन० १॥ निर्मल जलसे न्हवण कराऊं, अंगिया रचाउं थांरी न्यारी न्यारी न्यारी । केशर चंदन घिसं घनेरा, चरण चढ़ाऊं उंगली न्यारी न्यारी न्यारी ॥ जैन० २ ॥ भांति भांतिके पुष्प चढ़ाऊं, हार गुंथाउं कलियां न्यारी न्यारी न्यारी । अष्ट द्रव्य पूजामें लाऊं, भावना भाउं हितकारी शुभकारी ॥ जै० ३ ॥ हाथ खखरिया, पांव पकड़िया विच विच हीरा मोती लग रहे भारी। सेवक भैरूजी से अरज करत हैं, नित प्रति लो बाबा ढोक हमारी ॥ जै० ४॥ भैरव आरती जैन के उद्योत भैरूं समकित धारी, शान्ति सूरति भवियंण सुखकारी । घूघर वाला केश सिंदूर से छवि के, केसर के तिलक सोहे, उगो मानो 1 रवि के ॥ जैन० १॥ सिर पर मुकुट कुण्डल काने शोभतो। गल सोहे నా ముందుకు 60
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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