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________________ ३८२ Lex Xx Sex Ste It Strota testestato Tootects जैन - रत्नसार ॥ काव्य ॥ सलिल चन्दन पुष्प फलव्रजैः, सुविमलाक्षत दीप सुधूपकैः । विविध नव्य मधुप्रवरान्नकैः, जिनममीभिरहं वसुभिर्य्यजे ||५|| ॐ ह्रीं परम परमाहमने अनन्तानन्त ज्ञानशक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमद् अरनाथ जिनेन्द्राय जलं, चन्दनं, पुष्पं, धूपं, दीपं, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, वस्त्रं, मुद्रां यजामहे स्वाहा । एकोनविंश श्रीमल्लि जिन पूजा ॥ दोहा ॥ उगणीसम जिन चरणकज, भमर होय लयलाय । सेवे तसु भवि भमरता, अगणित दुरित विलाय ॥१॥ ॥ ढाल ॥ मल्लिजिणंद उपकारी रे ॥ वाला मल्लि० ॥ मैं तो वारी जाऊं वार हजारी रे || वाला० मल्लि० ॥ कुंभ नरेश्वर गगनांगण में सहस किरण अवतारी रे || वाला • मल्लि० || २ || पूरव भव षमित्र नरेन्द्र प्रति, बोधि सिन्धु भवतारी । वेदत्रयी चिर ही तनु धारथो, सकल संघ सुखकारी रे || वाला० मल्लि० ||३|| शकल कुशल हरि चंदन तरुवर, नंदन वन अनुकारी रे। संघ चतुरविध भूरि खचरगण प्रणत चन्द्र अनुहारी रे || वाला • मल्लि० ॥४॥ ॥ काव्य ॥ सलिल चन्दन पुष्प फल व्रजैः, सुविमलाक्षत दीप सुधूपकैः । विविध नव्य मधु प्रवरान्नकैः जिनममीभीरहं वसुभिजे ||५|| ॐ ह्रीं परम परमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमद् मल्लि जिनेन्द्राय जलं, चन्दनं, पुष्पं, धूप, दीप, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं वस्त्रं, मुद्रां यजामहे स्वाहा ।
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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