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________________ Shందనందుడు యుగంధరుడు మదురుగtarrestrike पूजा-विभाग ३८१ www innrntistiatistatistiatili-REATINCT402-tanki- kLYA అనంతరం తనననన తదనం ॥ ढाल॥ (अरिहन्त पद नित ध्याइये) कंथु जिणंद गुण गाइये ॥ वारि० ॥ मन वंछित फल पाइये रे । । प्रभु समरण लय लाइये ॥ वारि० ॥ भविभव तजि शिव जाइये रे ॥ । कुंथु० ॥२॥ भव जलगत निज आतमा ॥ वा० ॥ करुणा उर धरि ताइये। रे । चरण करण उपयोगिता ॥ वा० ॥ ग्रहण करण कू धाइये रे ॥ वा० ॥ कुं० ॥३॥ ए प्रभु दर्शन जीव ने ॥ वा० ॥ अनुभव रसनो दाइये रे। वर शिवचन्द विमल बधे, दिन दिन शोभा सवाइये रे ॥ कुं० ॥४॥ ॥ काव्य ॥ ___ सलिल चन्दन पुष्प फलबजैः, सुविमलाक्षत दीप सुधूपकैः । विविध नव्य मधुप्रवरान्नकैः, जिनममीभिरहं वसुभिर्यजे ॥५॥ ॐ ह्रीं परम परमात्मने अनन्तानन्त ज्ञानशक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमद् कुंथ जिनेन्द्राय जलं, चन्दन, पुष्प, धूप, दीप, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, वस्त्रं, मुद्रां यजामहे स्वाहा । अष्टादश श्रीअरनाथ जिन पूजा ॥दोहा॥ जिन अठारमो ध्याइये, भविजन चित्त मझार । करण तीन इककर मुदा, प्रतिदिन जयजयकार ॥१॥ ॥राग ॥ (वसंत संग लागी ही आवे, कुण खेले तोसं होरी रे ) निज विमल भक्तिसे अर जिनसे नित रमिये रे ॥ निज०, नि० ॥ निजगुण निजगुण तुल्य करणकं, चंचल चित हिय दमिये रे ॥ नि० ॥२॥ सुमति युवति संयम उर धरिके, कुमति नारि संग गमिये रे ॥ नि० ॥ अनुभव अमृत पान करणते, विषय विकृत विष दमिये रे ॥ निज० अर० ॥३॥ जिनवर संग रमण दव अनले. पंक सघन वन घमिये रे । कहे शिवचन्द्र जिनेन्द्र रमणसे, भवरणमें नवि भमिये रे ।। निः || .THAPTERNATAYARTHATAFAIRMATHAKHARAYAMAHARASHTRAFF త రం Par t reerstar.EL.Eta.ke istraliadeletirthalalnetelarki-tierotalalalaolateletastendindiatest a
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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