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________________ ut t ototaarateelersatishnilialist kohlish Breakab lastistialatanle destostsKEktarrottarakhnet पूजा-विभाग ३८३ ย-โthairะ : -BATATTATREATki.er.ETE................ ได้น้องได้นะคในคดดไปัดได้ไงไอดได้อะไee HE-/- titiAirliAATHTTraisinal-I- T a -T-FAMIL विंशतितम श्रीमुनिसुव्रत जिन पूजा ॥दोहा ।। पद्मोत्तर वर पद्मनद, गत पर पद्म समान । विंशतितम जिन पूजिये, केवल लच्छि निधान ॥१॥ ॥ राग गरवो (ढाल)॥ (सुण चतुर सुजाण, परनारीसे प्रीति कबहु नहिं कीजिये) मुनि सुव्रत जिनेन्द्र सुनिजर धरि मुझपर वर दरशन दीजिये । प्रभु दरश प्रीति निरुपाधिकता, करिये लहिये शिव साधकता । तब तुरत मिटे सब बाधकता ॥ मु० २ ॥ अमृतमें साध्य पणो विलसे, प्रभु दरशन साधनता उलसे । तव मुझमें साधकता मिलसे ॥ मु० ३॥ भिन्नादि करणता यदि विघटे, एकाधि करणता यदि सुघटे। तवमुझ शिव साधकता प्रकटे ॥ मु० ४ ॥ एकाधिकरणता मुझ करिये भिन्नाधिकरणता परिहरिये । शिवचन्द्र विमल पद तब वरिये ॥ मु० ५ ॥ ॥काव्य ॥ सलिल चन्दन पुष्प फलवजैः, सुविमलाक्षत दीप सुधूपकैः । विविध नव्य मधुप्रवरान्नकैः जिनममीभिरहं वसुभिर्यजे ॥६॥ॐ ह्रीं परमपरमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमद् मुनिसुव्रत जिनेन्द्राय जलं, चन्दनं, पुष्पं, धूपं, दीपं, अक्षतं, नैवेद्य, फलं, वस्त्रं, मुद्रा यजामहे स्वाहा । एकविंशतितम श्री नमि जिन पूजा ॥दोहा॥ अंतर वैरि नमाविया, तब लहियो नमि नाम । भविजन ए प्रभु पूजसे, सरिये वंछित काम ॥१॥ i - k GETAJEVAKAIRET-TataiT-Tiliatu3 Yไอดใจได้ไกลโคโคไดลใจใดใจ" ให้ใจได้ในครัวได้ใจใครใจดไว้ในใจได้ในคใดได้โดนใจ ใช้ใจไดไไดดไปังไจจได้ในใจงจได” ไดใจให้ใจได้ E ........LAT . ........ ลดนใwwwง" ใน ..
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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