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________________ सूत्र विभाग सेलसिहरे, दिक्खा नाणं निसीहिआ जस्स । तंधम्मचक्रवहिं, अरिनेमिं नमं सामि ॥४॥ चचारि अट्ठ दस दोय, वंदिया जिणवराचउव्वीसं । परमट्ठ निट्ठि अड्डा, सिद्धा सिद्धि मम दिसंतु ॥५॥ वेयावच्चगराणं सूत्र ε वेयावच्चगराणं संतिगराणं सम्मद्दिट्ठि समाहिगराणं करेमिकाउसग्गं । अन्नत्थ• इत्यादि ॥ सुगुरु वन्दन सूत्र इच्छामि खमासमणो ! बंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए अणुजाणह मे मिउग्गहं । निसीहि, अहोकायं काय संफासं । खमणिज्जो भे किलामो । अप्प किलंताणं बहुसुभेणभे दिवसो वइक्कतो ? जत्ता भे ? जवणि ज्जं च भे? खामेमि खमासमणो! देवसिअं वइक्कमं । आवरिसआए पडिक्कमामि । खमासमणाणं देवसिआए आसायणाए तित्तीसन्नयराए जं किंचि मिच्छाए मण दुक्कडाए बय दुक्कडाए काय दुक्कडाए कोहार माणाए माया लोभाए सव्व कालियाए सव्व मिच्छोवयोराए सव्व धम्माइक्कमणाए आसायणाए जो मे अइयारो कओ तरस खमासमणो ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । आलोउं सूत्र' इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! देवसिअं आलोउं । इच्छं । आलोएमि आलोयणा आजुणा चार पहर दिवस में मैंने जिन जीवों की विराधना की हो । सात लाख पृथ्वीकाय, सात लाख अप्पकाय, सात लाख तेउकाय, सात लाख वाउकाय, दस लाख प्रत्येक वनस्पतिकाय, चौदह लाख साधारण वनस्पति १ प्रतिक्रमण में इस सूत्र से मुखवस्त्रिका ( मुंहपत्ति ) चरवले (पुंजनी) के ऊपर रख उसे गुरु चरण स्थापना जान वन्दन किया जाता है। विशेष जानने के लिये आवश्यक निर्युक्ति देखें 1 २ यह पाठ सम्पूर्ण पृष्ठ ७ में है । ३ इस सूत्र में खड़े होकर चौरासी लाख जीवायोनि की आलोयणा की जाती है । 2
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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