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________________ trobacter testetet Sosto tootector testactutterfretetet to taste जैन - रत्नसार १० काय, दो लाख बेइन्द्रिय, दो लाख तेइन्द्रिय, दो लाख चौइन्द्रिय, चार लाख. देवता, चार लाख नारक, चार लाख तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय, चौदह लाख मनुष्य । कुल चौरासी लाख जीवयोनियों में से किसी जीव का मैंने हनन किया हो, कराया या करते हुएका अनुमोदन किया हो वह सब मन, वचन, काया करके मिच्छामि दुक्कडं । अठारह पापस्थानक आलोयणा' पहला प्राणातिपात, दुसरा सृषावाद, तीसरा अदत्तादान, चौथा मैथुन, पांचवां परिग्रह, छठा क्रोध, सातवां मान, आठवां माया, नववां लोभ, दशवां राग, ग्यारहवां द्वेष, बारहवां कलह, तेरहवां अभ्याख्यान, चौदहवां पैशुन्य, पन्द्रहवां रतिअरति, सोलहवां पर परिवाद, सत्रहवां माया मृषावाद, अठारहवां मिथ्यात्वशल्य, इन पापस्थानों में से किसी का मैंने सेवन किया, कराया या करते हुए को अनुमोदन किया हो वह सब मन, वचन, काया करके मिच्छामि दुक्कडं । ज्ञानोपकरणों की आलोयणार ज्ञान, दर्शन, चारित्र, पाटी, पोथी, ठवणी, कवली, नवकरवाली, देव, गुरु, धर्म की आशातना की हो, पन्द्रह कर्मादानों की आसेवना की हो, राजकथा, देशकथा, स्त्रीकथा, भुक्त ( भोजन ) कथा की हो, और जो कोई पर निन्दादि पाप किया हो, कराया हो, करते हुए का अनुमोदन किया हो सो सब मन, वचन, काया करके मिच्छामि दुक्कडं । पोसह संध्या अतिचार । ठाणे कम चकम आउत्ते अणाउते हरियक्काय संघट्टे बीयकाय संघट्ट थावरकाय संघट्टे छप्पइया संघट्टे सव्वरसवि देवसिय दुच्चितिय दुभासिय चिट्ठिय इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इच्छं तरस मिच्छामि दुक्कडं । १ प्रतिक्रमणमें इस सूत्र द्वारा खड़े होकर अठारह पापस्थानोंकी आलोयणा की जाती है । २ इस पाठ के द्वारा प्रतिक्रमणमें खड़े होकर ज्ञान तथा दर्शन के उपकरणों की आलोयणा की जाती है।
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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