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________________ othe ८ b b b b b b b b b bb जैन-नसार जाई - जरा-मरण - सोग-पणासणस्स । कल्लाणपुक्खल-विसाल-सुहावहस्स || को देव-दानव नरिंद - गणच्चियस्स | धम्मस्स सार मुवलब्भ करे पमायं ! || ३ | सिद्धे भो । पयओ णमो जिण मए गंदी सया संजमे । देवं नाग सुवन्न किण्णर गणरसन्भूअ भावच्चिए ॥ लोगो जत्थ पइडिओ जगमिणं तेलुक्क मच्चासुरं । धम्म वडूउ सासओ विजयओ धम्मुत्तरं वड्डर ||४|| सुअरस भगवओ करेमि काउरसग्गं । सिद्धाणं बुद्धाणं सूत्र* सिद्धाणं बुद्धाणं, पारगयाणं, परंपरगयाणं । लोअग्गमुवगयाणं, णमो सयासत्व सिद्धाणं ||१|| जो देवाणवि देवो, जं देवा पंजली णमं संति । तं देव देव-महिअं, सिरसा बंदे महावीरं ||२|| इक्कोवि णमोकारो, जिणवर वसहरस वद्धमाणस्स । संसार सागराओ, तारेइ नरं व नारिं वा ॥ ३ ॥ उर्जित * सिद्धाणं बुद्धाणं की पूर्व गाथामे सिद्धोंकी स्तुति है । दूसरी व तीसरी गाथा में भगवान महावीर की स्तुति है। चौथी में श्री नेमिनाथजी की स्तुति है। पांचवी में चौवीसों की स्तुति है । सिद्धाणं बुद्धाणं सूत्र में अन्त की दो गाथायें सम्मिलिति करने का प्रमाण निम्नलिखित कथा से पाया जाता है : हस्तनागपुर निवासी धनसेठ एक समय गिरनार पर्वत पर संघ समेतं यान्त्रार्थ गया । भगवान नेमिनाथजी की प्रतिमा को उसने वस्त्र, आभूषण, पुष्प, माला तथा सुगन्धित द्रव्यों से अष्टप्रकारी पूजा तथा अंगिया रची। उसी समय महाराष्ट्र देश का मलयपुर नगर वासी दिगम्बर मतानुयायी वरुण नामका सेठ भी संघ सहित वहां आया। धनसेठ द्वारा कृत प्रभु पूजा को देख, उसने द्वेषवश सम्पूर्ण पूजा सामग्री उतार, फिर से प्रभु का प्रक्षालन किया। इससे दोनों में वादाविवाद होने लगा । और दोनों निर्णयार्थ विक्रम राजा के गिरिनगर (गुजरात प्रदेश ) में आये। रात्रि में धनसेठ को शासन देवी प्रगट हुई और उसने अन्त की दो गाथायें (उज्जित सेल सिहरे, चत्तारि अट्ठ दस दो ) देकर कहा कि यह मेरे प्रभाव से तुम्हारे संघ में सब छोटे, वड़ों को याद हो जायेंगी । और यही राजसभा में प्रमाण स्वरूप काम आयेंगी। ऐसा ही हुआ । राजा ने धनसेठ का पक्ष प्रवल जान, श्वेताम्बर तीर्थ की घोषणा कर दी। तभी से यह दोनों गाथा प्रतिक्रमण में सम्मिलित कर दी गई । ( श्री आत्मप्रवोध पृ० ६५ - प्रकाशक श्री जैन आत्मानन्द सभा भावनगर । ) A ď ď ď ď ď ď J JAAS
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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