SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ నరుడు నడుము అమlectriticallడుడుడalalalalalalalalathటుందhtalakattathala विधि-विभाग ............... १७६ .. minarurnwww......... andostantialanloglosledislaG उपाध्याय पद चैत्यवन्दन धन धन श्री उवझाय राय, सठतां धन भंजन । जिनवर दिसत दुवाल संग, कर कृत जग रंजन ॥१॥ गुण वण भंजण मण गयंद, सुय शृणि किय गंजण । कुणा लंघ लोय लोयणे, जत्थय सुय मंजण ॥२॥ महाप्राण में जिन लह्योए, आगम से पद तुर्य। - तिन पें अहि निशि हीर धर्म, वन्दे पाठक वर्य ॥३॥ उपाध्याय पद स्तवन सांवलिया अलगा रहोनें (ए चाल)हुयने हुयने हुयनेदुरी हुयने। चेतन भाखें सठने (दुरी हुयने ) तूं मुझ पास क्यू आवे (दुरी हुयने ) तुझ ने | कुण बतलावे (दुरी हुयने )। तो संगे निज पंचेन्द्रीनो, रचना चरम भुलाणो । णाणावरणी खय उपशम से भावेन्द्री मंडाणो (दुरी हुयने) ॥१॥ द्रव्येते परजाप्ते कीना, जाति नामव्यपदेशे, एवंतो गो तुरग गजादिक, क्षणकर्मे उपदेशे ( दुरी हुयने ) ॥२॥ इत्यादिक बहु मुझ कू शंका, तेरे संगे लागी। नील वर्ण की समता सेती, मैं भयो तोसूं रागी ( दुरी हुयने ) ॥३॥ उपकहिये हणियो भवि यानो, अधियां लाभत आय । आधीनां मन पीड़ाना में, मायो येन विलायें ( दूरीहुयने ) ॥४॥ आधिक्ये स्मरिये वर आगम सूत्र से ते उवझाय । तत्सेवा ते हणि सठतां कू चेतन. कुशलता पाय ( दूरी हुयने ) ॥५॥ उपाध्याय पद थुई अंग इग्यारे चउ दे पूरब, गुण पचवीसनाधारीजी। सूत्र अरथधर पाठक कहिये जोग समाधि विचारीजी ॥ तपगुण सूरा, आगम पूरा, नयनिक्षेपै तारीजी ॥ मुनि गुणधारी गुण विस्तारी, पाठक पूजो अविकारी जी ॥१॥ . odalpatibiotibanaimalakareesh Yasmital IndianR ainkinYAYAakanki k eeyatmakatekasisit-throamrahtikottarts रकमम लयप्रवराष्ट्रप्रयागंध-प्रचन्द्र i te
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy