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________________ १८० जैन-रत्नसार wwwwwwwwwwwwwww www. DialolanaeiolinesscdiachanlalitAREERIAGESMarreHA ATHAGRA साधु पद की २७ जयति ॥१॥प्राणातिपात विरमणवत युक्ताय श्रीसाधवे नमः॥२॥मृषावाद विरमणबत युक्ताय श्री साधवेनमः ॥३॥ अदत्तादान विरमणबत युक्ताय श्री साधवे नमः ॥४॥ मैथुन विरमणव्रत युक्ताय श्री साधवेनमः ॥५॥ परिग्रह विरमण व्रत युक्ताय श्रीसाधवे नमः॥६॥ रात्रि भोजन विरमण व्रत युक्ताय श्री साधवेनमः ॥७॥ पृथ्वी काय रक्ष काय श्री साधवेनमः ॥८॥ अप्पकाय रक्षकाय श्री साधवेनमः ॥९॥ तेऊकाय रक्षकाय श्री साधवेनमः ॥१०॥ वाउकाय रक्षकाय श्री साधवेनमः ॥११॥ वनस्पतिकाय रक्षकाय श्री साधवेनमः ॥१२॥ त्रसकाय रक्षकाय श्री साधवेनमः ॥१३॥ एकेन्द्रिय जीव रक्षकाय श्री साधवेनमः ॥१४॥ बेइन्द्रिय जीव रक्षकाय श्री साधवेनमः ॥१५॥ तेइन्द्री जीव रक्षकाय श्री साधवे नमः ॥१६॥ चौरिन्द्री जीव रक्षकाय श्री साधवे नमः ॥१७॥ पञ्चेन्द्री जीव रक्षकाय श्री साधवेनमः ॥१८॥ लोभ निग्रह काय श्री साधवेनमः ॥१९॥ क्षमा गुण युक्ताय श्री साधवेनमः ॥२०॥ शुभभावना भावकाय श्री साधनमः ॥२१॥ प्रति लेखनादि क्रिया शुद्ध कारकाय श्री साधवे नमः ॥२२॥ संयम योग युक्ताय श्री साधवेनमः ॥२३॥ मनो गुप्ति युक्ताय श्री साधवेनमः ॥२४॥ वचन गुप्ति युक्ताय श्री साधवेनमः ॥२५॥ कायगुप्ति युक्ताय श्री साधवे नमः ॥२६॥ शीतादि द्वाविंशति परीसह सहन तत्पराय श्री साधवे नमः ॥२७॥ मरणान्त उपसर्ग सहन तत्पराय श्री साधवेनम: ॥ साधु पद चैत्यवन्दन दसण णाण चरित्त करी, वर शिव पद गामी। धर्म शुक्ल सुचि चक्रसे आदिम खय कामी ॥१॥ गुण पमत्त अपमत्त पें, भये अंतरजामी । मानस इन्द्रिय दमन भूत, सम दम अभिरामी ॥२॥ चारित्र धन गुण गण भरयो ए पंचम पद मुनिराजीतत्पद पंकजं नमत है हीर धर्म के काज ॥३॥ - * साधुओं में ये सत्ताइस गुण अवश्य होने चाहिये। .पालगणना प्रणालगनगणनणणय क्रमप्राणू
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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