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________________ ******* विधि-विभाग सिद्ध पद स्तवन थारे महंला ऊपर मेह झरोखे बीजली || (ए चाल ) अप्ट वरस नग मास हीना कोडी पूर्व में, म्हारा लाल ही ना कोडी पूर्व में । उत्कृष्टी करे बास संयोगी धाम मे || म्हारा लाल संयोगीधाम में अजांगीके अन्त तजे भवभव्यता म्हारा लाल तजे भव भव्यता । शैलेशी १७५ हे कर्म द गुणश्रेणिता म्हारा लाल दले गुण श्रेणिता ॥ १॥ ह्रस्वाक्षर पञ्च काल रहे ते योग में म्हारा लाल रहे तेयोगमें । तेरस प्रकृति नो अन्त करीने अन्तमें (म्हारालाल करीने अन्तमें) || गमण करे नगरज स्से अक्रिय होयने (म्हारालाल अक्रिय होयने ) पुव्व पयोग असंग स्वभाव अवधने म्हारालाल स्वभावबंधने ||२|| इषु गुण नव परमाण योजन लक्षे कही म्हारालाल योजन लक्षे कही । वर्त्तुल विसदा भाष निरा लंबन सही म्हारालाल निरालंवन सही ॥ मध्ये योजन अष्ट घनाकृति अन्त में महालाला घनाकृति अन्त में । मक्षी पक्ष थी हीणभणी सिद्धान्त में म्हारालाला भणीसिद्धान्त में ||३|| तनु पब्भारा नाम शिला से योजने म्हारालाल शिला से योजने । लघु अंगुल बत्तीस प्रमाण अवगाहना म्हारालाल प्रमाण अवगाहना । वृद्धि धन शत पञ्च गुणासे हीनता, म्हारा लाल गुणासे हीनता मिलिया एकमें अन्त अवाधा नाल ही म्हारा लाल अबाधा नाल ही ||४|| अष्ट प्राण धरि रम्य सिरीही जो सही म्हारालाल सिरीही जो सही, बीजो पढ़ श्री सिद्ध घरो मन गेह में म्हारालाल धरो मन गेह में । कुशल भये जग जीव मिलांगा ते हमें म्हारारालाल मिलांगा ते हमें ||५|| सिद्ध पढ़ थुई अष्ट काम कू दमन करीनें, गमन कियो शिववासीजी । अव्यावाध सादि अनादि, चिदानन्द चिराशीजी || १|| परमातम पद पूर्ण विलाशी, अघ धन दाय विनाशीजी । अनन्त चतुष्टय शिव पढ़ ध्यावी, केवल ज्ञानी भाषीजी || २ ||
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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