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________________ arrerana... Prerrecreerererererererererererere ఇంతవరకు ముందు ముందు గుండు వరకు చదువు చదువును ముందు నుంచునపడినపుడు యువతను పడిన సమంత నునుపమను పట్టు १७४ जैन-रत्नसार . संज्ञी मात्र के मन व्यापार, बे इन्द्रिने वाक्य प्रचार मन मानले । । आदि समय रह्यो पण कसु जीव, सूक्ष्म लह्यो तिण जोगअतीवमनमानले ॥३॥ एषां योग थी समये एक, हीना संख गुणों कर छेक मन मानले । समया संखे जोग निरोध, कृत्वा जो लह्यो जोगी सोध मन मानले ॥ वेद समें ना हारता पाय, कुशल कहे ते श्री जिनराय मन मानले । तेरमें गुण में गुण समें देव, आपो सा जग नित मेव मन मान समाप्रमग्राममन न अरिहन्त पद थुई सकल द्रव्य पर्याय प्ररूपक, लोका लोक स्वरूपो जी । केवलज्ञानकी ज्योति प्रकाशक, अनन्त गुणे करि पूरो जी ॥ तीजे भव थानक आराधी, गोत्र तीर्थङ्कर नूरो जी । वारे गुणांकरी एहवां अरिहन्त, आराधो गुण भूरो जी ॥१॥ श्री सिद्ध पद की ८ जयति ___॥१॥ अनन्त ज्ञान संयुक्ताय श्रीसिद्धाय नमः॥२॥अनन्त दर्शन संयुक्ताय श्री सिद्धाय नमः ॥३॥ अव्याबाध गुण संयुक्ताय श्री सिद्धाय नमः ॥॥ अनन्त चारित्र गुण संयुक्ताय श्री मिद्धाय नमः ॥५॥ अक्षय स्थिति गुण संयुक्ताय श्री सिद्धाय नमः ॥६॥ अरूपी निरंजन गुण संयुक्ताय श्री सिद्धाय नमः ॥७॥ अगुरु लघु गुण संयुक्ताय श्री सिद्धाय नमः ॥८॥ * अनन्तवीर्य गुण संयुक्ताय श्री सिद्धाय नमः ॥ सिद्ध पद चैत्यवन्दन श्री शैलसी पूर्व प्रान्त, तनुहिनत भागी। पुच पओग असंग से, ऊरध गत जागी ॥१॥ समय एक में लोक प्रान्त, गये निगुण निरागी। चंतन भूपं आत्म रूप, सुदिसा लहि सागी ॥२॥ केवल दंसण णाणथी ए रूपातीत स्वभाव, सिद्ध भये तसु हीर धर्म, वन्दे धरि शुभ भाव ॥३॥ * सिद्ध भगवान् में यह आठ गुण मोक्ष में जाने के बाद पैदा हो जाते हैं। •PRAKALost talatabadattitisatistatataditilashtanitattoobhangstatistattattattitudotbhetitikimottitilbhalebissauththkaththikaitbudhlata KEYEN --- -77maratrina তেল-নুভশশুণত্বশান্তস্বলশ্বশ্বখণ্ডৰ্ম্মম্মম্মম্মম্মম্মম্মম্ম
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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