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________________ ............. ... .. - rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr. ......marrierror an - Thalantointothlalitalhtmlatastrole talkitatasthtoskatretartstainlisastareasnahintastinata.lmistantanaristhousantantriteratulaletal.sanlain tertenbetaulatatatulamkistatemlatalabrtasthi haata haloostinto loolatalasniloslely १६० जैन-रत्नसार माला (जाप) फेरे । तपस्या का विधिपूर्वक यथाशक्ति उद्यापन कर सिद्धाचलजी की यात्रा करे । इस तपस्या के फलस्वरूप तपखी को कप्ट नहीं होता, आनन्द भोगता है । रोग शोक भय आदि दौर्भाग्य की प्राप्ती नहीं होती संसार में यश फैलता है और मोक्ष सुखकी प्राप्ति होती है। अट्ठाइस लब्धि तप विधि। शुभ दिन, शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में गुरु के पास से विनयपूर्वक अट्ठाइस लब्धि तप ग्रहण करे । इस तपस्या में अट्ठाइस उपवास करने होते हैं। जिस दिन जिस लब्धि का उपवास हो उस दिन उसी नाम का जाप करे तथा स्तवन पढ़े या श्रवण करे । यथाशक्ति देव वन्दनादिक प्रतिक्रमण | करे धार्मिक क्रियायें भी करे और उद्यापन करे । इस तपस्या से बुद्धि निर्मल होती है तथा आनन्द होता है ऐसा शास्त्रकारों का कथन है । चतुर्दश पूर्व तप विधि उत्तम दिन देखकर तपस्या ग्रहण करे । इसमें चौदह उपवास करने होते हैं । जिस दिन जिस पूर्व का उपवास हो उसी पूर्व के नामसे २० माला फेरे और स्तवन पढ़े या श्रवण करे। स्तवन में १४ पूर्व के । नाम तथा विधि दी गई है उसी प्रकार गुरु से समझ कर भव्यात्मा तप आराधन करे इस तपस्या से ज्ञानावरणादि कर्मों का क्षय होकर उत्तम ज्ञान की प्राप्ति होती है। तिलक तपस्या विधि शुभ दिन, शुभमुहूर्त में गुरु के पास से तिलक तपस्या ग्रहण करके कुल तीस उपवास क्रमशः करे । प्रथम ऋषभदेव स्वामी के छह उपवास करे | इन उपवासों में "श्री ऋषभदेव स्वामी सर्वज्ञाय नमः” इस पद का , दो हजार जाप करे । तत्पश्चात् श्री महावीर स्वामी के दो उपवास करे । इन दो उपवास के समय "श्री महावीर सर्वज्ञाय नमः” इस पद की वीस माला फेरे और यथाशक्ति धर्म ध्यान करे । इनके पीछे क्रमशः बाइस तीर्थङ्करों के बाइस उपवास करे । जिस दिन जिस तीर्थङ्कर का उपवास ไดไไไไไไดไไดไไไดไไดไไไไไไดไดไไไไไไดไไดไดไดไไดไขใจไดตไพศไทยไปไม่ได้ไละไดไไไดไไดไดไไไดไปัจจในไอพไพไรสักไดไอนได้ใจไดสไตไดไลนคไตไลไกใจได้ในไตใจนไดใดใดใดใดไดไไดไดไไไไไไไไไไไไไไไง E
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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