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________________ विधि-विभाग दिन उपवास करे और बारहवें श्रीवासुपूज्यजीकी पूजन करे आगे अप्ट मङ्गलीकी रचना करे और अष्टद्रव्य चढ़ावे । देववन्दनादिक धार्मिक क्रियायें करके गुरुके मुखसं धर्मोपदेश श्रवण (सुना) करे। गुरुका संयोग न हो सकने पर "रोहिणी तप" स्तवन को भावसे पढ़े या किसी अन्यसे मुने और "श्रीवासुपूज्य स्वामी सर्वज्ञाय नमः" इस पदकी २० माला फरें। इस प्रकार विधि पूर्वक सात वर्ष सात महीनेमें इस तपकी आगधना करनेमे मनोकामना पूर्ण होगी, पुत्रादिकके अभावका शोक सन्ताप दर होगा और मुख सौभाग्यकी वृद्धि होगी। छम्मासी तप विधि जिस प्रकार शासन नायक भगवान महावीर स्वामीने छम्मासी तपकी उत्कृष्ट तपस्याकी उसी प्रकार वर्तमान समयमें उतना बलपराक्रम न होनसे इम तपका होना कठिन है तो भी एक सौ अरसी उपवासोंके करनेसे जीव जघन्य छम्मानी तपके फलोंको प्राप्त कर सकता है। तपम्याकं दिन देव वन्दनादिक धार्मिक क्रियायें कर और छम्मासी तपक स्तवनको भावने मनन पूर्वक पढ़े अथवा सुने । साथ ही साथ "श्री महावीर स्वामी नाथाय नमः" इस मन्त्रकी वीस माला फेरे और जहां वीर प्रभु नामका तीर्थ हो क्षत्रियकुण्ड, पावापुर आदि वहां यात्रा करनेके लिये जावे. शुद्ध भावना भावे, यधागत्ति, नपका उद्यापन करे । इन नपम्याके प्रभावने जीव लघुकमी हो अनन्त सुग्योंको प्राम करना है। बारहमामी तप विधि यम नीर श्री ऋषभदेव न्वामी ने उत्कृष्ट बारहमानी नप की नामा मर्ग अनः भन्य जीवों को भी यह नपन्या अवश्य आदरणीय है। पर नपस्या नादी ममगः बटालानुनार नीन मा माट ( १६. ) भवानी जिस दिन बन सय उन दिन देय बन्दनादिर, प्रनिगमण भाभिनयागाआगनानी नया नयन द वंक पटे अश्या मा. . . मानदेव म्यामा नाथाय नम:" र मन्त्राः
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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