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________________ You tanto foto foto Yatak Yokomitatutto) विधि-विभाग १६१ हो, उस दिन उसी पद की बीस माला फेरे और शेष विधि स्तवन के अनुसार गुरु से समझ कर सम्पूर्ण करे । इस तपस्या से चरम शरीरी तथा अनन्तानन्त सुखों की प्राप्ति होती है । सोलिये तप विधि क्रोध, मान, माया, लोभ, क्रमशः इन चारों कषायों के अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानी, प्रत्याख्यानी और संज्वलन इनके द्वारा एक एक के चार २ भेद होनेसे १६ भेद होते हैं चूंकि ये ही हमारे मोक्षरूपी सुखमें विशेष कर बाधक हैं अतः इनको निवारण करने के लिये तपस्वी को १६ तप की तपस्या करनी होती है । पहले दिन एकासणा, दूसरे दिन णिव्वि तीसरे दिन आयंबिल और चौथे दिन उपवास, इस तरह अनुक्रम से चार बार व्रत करके १६ दिन की तपस्या सम्पूर्ण करे । तपश्रर्या के दिन १६ तप का स्तवन श्रद्धापूर्वक पढ़े अथवा श्रवण करे । तप पूर्ण होने पर यथाशक्ति उद्यापन करे । इस तपस्या से निश्रय ऋद्धि को भोगता हुआ सिद्धि ( मोक्ष ) को प्राप्त करता है । उपधान तप प्रवेश विधि जब बहुत से श्रावक और श्राविकाएं उपधान तप करने वाली हों तो संघ के नाम से अच्छा चन्द्रमा देखना | अगर एक श्रावक या एक श्राविका उपधान तप करे तो अपने नामसे अच्छा चन्द्रमा देख कर उपधानवाही संध्याको गुरु महाराजके पास आ इरियावही • कह कर खमासमण दे अमुक 'उपधान तवे पवेसह' कहे । गुरुके 'पवेसामो कहने के बाद णमुक्कारसी करना, अंगपडिलेहण संदिसाऊँ' कहने पर 'तहत्ति' कहे । पीछे चउ - व्विहार करे या पानी पीवे अथवा भोजन करे इसकी कोई बात नहीं । अगर किसी कारण से संध्या को खमासमण न दी हो तब प्रतिक्रमण के समय से पूर्व तथा पीछली रातमें खमासमण देना । प्रतिक्रमणके समय प्रतिक्रमण करना । णमुक्कारसी का पचवाण करना । पीछे सूर्य के उदय होने पर गुरु महाराज अथवा वाचनाचार्य के पास जाना । वहां प्रथम दो उपधानों 21
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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