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________________ मार जन-रत्नसार www.www.www.www.wwwwwwwwwwwwwwww.rrrrrrr ... . www.www.www.www.wwer hendmlalkageONICSIRSCIENobitasas tr o MitrAYANAYASYC सुसंगति रूप वृद्धानुगत तीर्थ गुणाय नमः । २० सर्वगुण मूल रत्नत्रयी तत्वत्रयी शुद्धता प्रापक रूप विनय तीर्थ गुणाय नमः । २१ धर्माचार्यस्य बहुमान कर्ता स्वल्पोपकारमपि अविस्मर्ता परगुण योजनोपकार करण सदा परहितोपदेशक करण कारण रूप परहितकारि तीर्थ गुणाय नमः । २२ अल्प बहुश्रुत तप क्रियादि योग्यता ज्ञापक, यथानुकूल धर्मप्रापक, सर्व स्वकार्य साक्षिरूप लब्ध लक्ष तीर्थ गुणाय नमः । इत्यादि विधि संयुक्त बीसों ओलिये उत्सव, महोत्सव, प्रभावना, उजमणा पूर्वक सम्पूर्ण करे । यदि जिन शासनकी उन्नतिके वास्ते इतनी शक्ति न होय तो कमसे कम एक ओलीका उत्सव तो अवश्य ही धूमधामके साथ करे। ये विधियें प्राचीन ग्रन्थोंसे संक्षेपमें लिखी गई हैं इसलिये अगर गुरुका संयोग हो तो विस्तारसे बीसों पदोंकी जुदी जुदी विधि गुरुसे समझ के करे । अगर गुरुका संयोग न हो तो इसी विधिके अनुसार भावसे सम्पूर्ण तप करे। तथा बीसस्थानक तपका स्तवन भी उसी दिन पढ़े अथवा सुने और मन्दिरमें बीसस्थानककी पूजा करावे तथा यथाशक्ति बीस बीस ज्ञानोपकरण बनवावे । देवपदका देवमें, ज्ञानपदका ज्ञानमें और गुरु पदका गुरुके ही लिये खर्च करे। समस्त तीर्थोकी यात्रा करे, साधर्मीवत्सल. करे । इत्यादि विधि संयुक्त भावसे जो भव्य जीव 'बीसस्थानक तप की आराधना करते हैं वह तीर्थङ्कर नाम कर्मका उपार्जन कर तीसरे भवमें अनन्त सुखोंको प्राप्त करते हैं। रोहिणी तपकी विधि शुभ दिनमें गुरुके पास रोहिणी तप ग्रहण करे । रोहिणी नक्षत्रके .' इम तपश्चर्या के करनेसे तीर्थङ्कर गोत्रका बंध होता है। श्रेणिक, रावण, कृष्ण आदि जीवोंने इसी तप प्रभावमे आगामी चौवीसीमें तीर्थकर गोत्रका वध किया है। अतः तीर्थकर alamaniandedneementaticleanloa danaanaataanaamanna होंगे। रोहिणी तपके प्रभावसे रोहिणी रानीने अपने जीवनमें कभी भी दुःखका अनुभव नहीं किया। यह तप स्त्रियोंको ही करना चाहिये। HTRArie144444141.
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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